बैंक प्रोबेशनरी ऑफिसर की तैयारी कैसे करें(How to Prepare Bank Probationary Officer.)

बैंक प्रोबेशनरी ऑफिसर की तैयारी कैसे करें (How to Prepare Bank Probationary Officer.)


बैंक प्रोबेशनरी ऑफिसर की तैयारी कैसे करें(How to Prepare Bank Probationary Officer.) उन सभी बेरोजगारों के मन में बैंक पी ओ के पदों को प्राप्त करना चाहते हैैं। जो भारत के राष्ट्रीयकृत बैंकों में पी ओ के पदों में रुतबा एवं सम्मान है।


बैंक पी ओ की नौकरी प्राप्त करने के लिए समय-समय पर रोजगार समाचार एवं समाचार पत्रों में विज्ञापन आते रहता है।


बैंक प्रोबेशनरी ऑफिसर की तैयारी कैसे करें(How to Prepare Bank Probationary Officer.) 


बैंक पी ओ के लिए योग्यता -: बैंक पी ओ के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता, किसी भी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री या उसके समकक्ष डिग्रियां होना चाहिए।


बैंक पीओ के लिए उम्र सीमा -: कोई राष्ट्रीयकृत बैंक हो या कोई प्राइवेट बैंक हो उम्र सीमा 21 वर्षों से 30 वर्ष तक निर्धारित की गई है। इसमें कुछ खास लोग जो आरक्षण में आते हैं। उन्हें कुछ उम्र सीमा में छूट भी रहता है। 


बैंक पी ओ की परीक्षा -: बैंक पी ओ की परीक्षा तीन चरणों में होता है। 


प्रारंभिक परीक्षा 

मुख्य परीक्षा 

इंटरव्यू


प्रारंभिक परीक्षा -: इस परीक्षा में मैथ, रिजनिंग, इंग्लिश, के वस्तुनिष्ठ (ऑब्जेक्टिव) टाइप के प्रश्न होते हैं। प्रारंभिक परीक्षा के प्रश्नों का माध्यम हिंदी एवं इंग्लिश में होता है। इन प्रश्नों को हल करने के लिए 60 मिनट का समय निर्धारित श हैं। इस परीक्षा में केवल कॉलिंफाइ होना होता है। इसमें नकारात्मक अंक का प्रावधान होते हैं।



मुख्य परीक्षा-:  बैंक पी ओ की मुख्य परीक्षा में वस्तुनिष्ठ प्रश्न होते हैं। इसमें रिजनिंग, कंप्यूटर, डाटा एनालिसिस, जनरल अर्थशास्त्र, बैंकिंग, अंग्रेजी लैंग्वेज से संबंधित प्रश्न पूूछे जाते हैं। इन प्रश्नों को हल करने के लिए 3 घंटे का समय निर्धारित रहता है। इसमें भी नकारात्मक प्रश्न का प्रावधान होते हैं।


वर्णनात्मक परीक्षा -: वर्णनात्मक परीक्षा में अंग्रेजी लैंग्वेज, इंग्लिश ग्रामर, लेटर राइटिंग, एस्से, से प्रश्न होते हैं। जो विषयनिष्ठ लिखना होता है। इसके लिए 60 मिनट का समय निर्धारित होता है।


इंटरव्यू -: इंटरव्यू 30 अंको का होता है। जिसमें आंकड़ों से संबंधित प्रश्न होते हैं।



तैयारी की रणनीति -: किसी भी बैंक पी ओ की परीक्षा के लिए हमें प्रतिदिन एक या दो सेट का अध्ययन कर। उसका मूल्यांकन करना चाहिए। जो भी गलत या कठिन हो उसको नोटबुक (कॉपी) पर लिखें। परीक्षा के समय नोटबुक (कॉपी) पर लिखेे हुए प्रश्नों को निरंतर पढ़ते रहें।


➡️रिजनिंग के प्रत्येक पाठों को ध्यानपूर्वक अभ्यास एवं आत्मसात करना चाहिए।


➡️अंग्रेजी वर्णमाला के कौन से वर्ण का कौन सा अंक होता है। उसको आत्मसात करें। जैसे  A- 1, B-2, C-3, D-4, ....... आदि।


➡️अपने दाएं एवं बाएं वाले रिजनिंग को अभ्यास करें।


➡️दिशानिर्देश का कंसेप्ट क्लियर करें।


➡️पिछले कुछ सालों के क्वेश्चन बैंक को हल करें। कठिन या नहीं आ रहे प्रश्नो को कॉपी पर लिखने के बाद निरंतर अभ्यास करते रहें।


➡️प्रश्नों को हल करने से पहले बढ़िया से समझना चाहिए।


➡️आसान प्रश्नों का हल सावधानी पूर्वक पहले करें।


➡️कठिन प्रश्नों का उत्तर बाद में देने का प्रयत्न करें।


➡️परीक्षा में कम प्रश्नों का उत्तर दें। लेकिन जो भी बनाए सही बनाएं। परीक्षा में कठिन प्रश्नों में ज्यादा समय बर्बाद नहीं करना चाहिए। 


➡️पिछले कुछ सालों का क्वेश्चन बैंक बनाने से आत्मविश्वास बढ़ता है। उसे जरूर बनाएं।


➡️बैंक पी ओ की सफलता के लिए स्पीड बहुत मायने रखता है। बैंक पी ओ की परीक्षा की तैयारी शुरू करते समय ही मेंस और इंटरव्यू पर भी ध्यान देना जरुरी होता है।


➡️प्रतिदिन एक प्रश्न सेट अवश्य बनाएं। सेट बनाने से स्पीड बढ़ता है। 


➡️इस परीक्षा की तैयारी की बेहतर रणनीति हो सकता है।स्वयं अध्धयन करना।


➡️टेस्ट सीरीज हमेशा बनाते रहना चाहिए।


बैंक प्रोबेशनरी ऑफिसर की तैयारी कैसे करें(How to Prepare Bank Probationary Officer.)

स्वतंत्रता दिवस पर निबंध ( Independence Day.)

स्वतंत्रता दिवस  Independence Day.

प्रत्येक वर्ष 15 अगस्त 1947 को भारत की स्वतंत्रता दिवस Independence Day मनाया जाता है। इसी दिन ब्रिटिश शासन के 200 वर्षों के गुलामी के बाद भारतीय नागरिक को स्वतंत्रता( Independence) यानी आजादी मिली।

सोशल मीडिया का समाज पर प्रभाव(Impact on social media society)

उसी दिन से प्रत्येक वर्ष भारत के प्रधानमंत्री लाल किले के प्राचीर से राष्ट्र के नाम संबोधन करते हैं। झांकियों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है। उस दिन से प्रत्येक भारतीय सरकारी दफ्तर, विद्यालय, निजी भवन आदि पर राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाता है।

स्वतंत्रता दिवस ( Independence Day.)
स्वतंत्रता दिवस ( Independence Day.)


सोशल मीडिया का समाज पर प्रभाव(Impact on social media society)

यह एक राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाया जाता है। उस दिन प्रत्येक व्यक्ति देशभक्ति गीत या देशभक्ति फिल्म देखते हैं। यहीं नहीं देशभक्ति कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है। और उस दिन भारत का राष्ट्रीय मिठाई जलेबी खाया जाता है।

महिला सशक्तिकरण

इस दिन प्रत्येक व्यक्तियों के लिए खुशी के दिन होते हैं। क्योंकि बहुत ही कड़े संघर्ष और बलिदान के बाद हमें स्वतंत्रता Independence मिली। आज जो हम आजादी में सांस ले रहे हैं। उन सभी क्रांतिकारी बंधुओं को शत शत नमन, जो हमारे देश को आजादी दिलाने में उनका एक छोटा सा भी योगदान रहा हो।

ऐसे हमारे क्रांतिकारी भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, चंद्रशेखर आजाद, सुभाष चंद्र बोस, महात्मा गांधी, आदि। स्वतंत्रता (Independence) दिलाने में इन पुरुषों का योगदान महत्वपूर्ण था। ऐसे बहुत से क्रांतिकारी जिनका नाम हम लोग नहीं जानते हैं। उन सभी क्रांतिकारियों भाइयों को दिल से नमन करता हूँँ।

आज पूरे हिंदुस्तान को आजादी/ स्वतंत्रता (Independence) के लिए एक नारा भारत छोड़ो आंदोलन के आह्वान पर पूरे देश की जनता ने भाग लिया। इसमें छात्र, नौजवान, किसान, मजदूर एवं नौकरी पेशे आदि हर एक वर्ग के लोग शामिल हुए हैं। आजादी/स्वतंत्रता (Independence) की चाह ने एकजुटता के साथ संघर्ष किए हैं।

भारत को आजादी की चाह क्यों

हमारे देश की जनता को ब्रिटिश शासन के द्वारा द्वितीय विश्व युद्ध में शामिल किया जाने से भारतीय जनता काफी नाराज थे। और भारतीय जनता युद्ध में भाग लेना नहीं चाहते थे। इसके बावजूद भी ब्रिटिश शासन काल के प्रशासन के द्वारा जोर जबरदस्ती करके द्वितीय विश्व युद्ध में भारतीय जनता को शामिल किया। इस वजह से भारतीय लोगो को  स्वतंत्रता  (Independence) मन में खलने लगा।

पहले से ही किसान, मजदूर, छात्र, नौजवान, बिट्रिश प्रशासन से त्रस्त थी। उसके बाद भारत को द्वितीय विश्व युद्ध में शामिल करने से पूरे भारतीय जनता त्रस्त होने लगी। जिस कारण से भारत को आजादी की चाहत सन 1947 में बहुत जोरदार संघर्ष के बाद 15 अगस्त 1947 को आजादी/स्वतंत्रता (Independence) मिली। और 15 अगस्त का दिन ऐतिहासिक हो गया।

सोशल मीडिया का समाज पर प्रभाव(Impact on social media society)

सोशल मीडिया का समाज पर प्रभाव (Impact on social media society)

आज विश्व में सोशल मीडिया का समाज पर प्रभाव (Impact on social media society) की एक अलग पहचान बन गया है। जो किसी भी प्रकार का कोई भी वीडियो, ऑडियो, फोटो या लिखा हुआ मैसेज आदि। सोशल मीडिया के माध्यम से वायरल किया जा सकता है।

 इस वायरल का मतलब क्या है?


इस वायरल का मतलब यह है कि प्रत्येक मैसेज को प्रत्येक व्यक्ति के पास पहुंचाना ही सोशल मीडिया है।

आज सोशल मीडिया का लिंक बहुत सारे हैं। इसमें Facebook, WhatsApp, Twitter आदि प्रमुख लिंक हैं।

सोशल मीडिया का समाज पर प्रभाव(Impact on social media society) सोशल मीडिया पर पहले केवल युवा पीढ़ी को ही देखा जाता था। लेकिन आज की स्थिति ऐसा है कि इसमें बड़े, बुजुर्ग भी सोशल मीडिया पर देखे जा रहे हैं।


आज सोशल मीडिया समाज को पूरी तरह जकड़ लिया है
आज विश्व के अधिकांश भाग में सोशल मीडिया अपना आधिपत्य जमा लिया है। जैसे - ऑफिस, स्कूल, घर, कॉलेज या अन्य किसी भी सरकारी ऑफिस सोशल मीडिया ने घेर लिया है।

सोशल मीडिया के लाभ -:  

आज विश्व में आप किसी भी स्थान पर हैं। तो एक दूसरे से अकेला या सामूहिक रूप से बात कर सकते हैं। यही नहीं आजकल ऑफिस के कोई भी पत्र निकलता है, तो तुरंत ही सोशल मीडिया पर डाल दिया जाता है। जिससे हमें लाभ होता है। कोई भी राजकीय पत्र या अन्य किसी भी प्रकार के कोई लेटर आदि की जानकारी हमें तुरंत ही प्राप्त हो जाता है।

सोशल मीडिया से हानि-:

सोशल मीडिया पर आज बहुत से लोग अपना कीमती समय को बर्बाद कर रहे हैं। जिससे काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। अधिकतर लोग एक दूसरे के घर जाना पसंद नहीं कर रहे हैं। क्योंकि सोशल मीडिया के माध्यम से केवल मैसेज कर देते हैं। वह अपने समय को घर बैठ कर ही बर्बाद करते रहते हैं। और केवल मैसेज भेजते रहते हैं।

सोशल मीडिया के कारण व्यक्ति का मस्तिष्क क्षण क्षण बदलते रहता है। इस कारण व्यक्ति के मस्तिष्क धीरे-धीरे सोचने की क्षमता में कमी आने लगता है। फिर वह ध्यान केंद्रित नहीं कर पाता है। व्यक्ति का मस्तिष्क सुषुप्तावस्था में चला जाता है। मस्तिष्क काम करना बंद कर देता है।

सोशल मीडिया का समाज पर प्रभाव(Impact on social media society)

जिस कारण लोगों को यह सलाह दिया जाता है कि सोशल मीडिया नेटवर्क पर अधिक समय बर्बाद न करें। वास्तविकता की ओर हमेशा ध्यान रखे। किसी भी काम को न अधिक, न कम करने चाहिए। हमेेेशा बीच का मार्ग अपनाना चाहिए।


सकारात्मक सोच का जादू (Magic of positive thinking)

सकारात्मक सोच का जादू (Magic of positive thinking)

आज सकारात्मक सोच का जादू (Magic of positive thinking) से संसार में बहुत से लोगो के विचारों में शुद्धता और कार्य में निष्ठा वाले मनुष्य जीवन में सफल हुए। उस सफलता का मूल मंत्र मनुष्य अपने सकारात्मक सोच का जादू (Magic of positive thinking) या सकारात्मक सोच की शक्ति से जीवन को बेहतर बनाया।

सकारात्मक सोच का जादू (Magic of positive thinking)
सकारात्मक सोच का जादू (Magic of positive thinking) 

सकारात्मक सोच -: सकरात्मक सोच में इंसान अच्छाई, भलाई, सहायता करना या हमेशा बढ़ियां कार्य सोचते रहते हैं। जो इंसान सकारात्मक सोचते हैं। वह बहुत आगे बढ़ते हैं। और जो इंसान नेगेटिव सोचते हैं। वह कभी आगे नहीं बढ़ते हैं। यानी बुराई, ईर्ष्या एवं जलनशीलता के कारण वह इंसान कभी आगे नहीं बढ़ते हैं।

सकारात्मक सोच का जादू (Magic of positive thinking)


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आज से ही अपने विचारों में शुद्धता, कार्य में निष्ठा एवं  सकारात्मक सोच वाले इंसान बनने के प्रयास करे। ताकि आपको भी सफलता यथा शीघ्र प्राप्त हो सके।


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जो मनुष्य अच्छा सोच यानी सकारात्मक सोच की अद्भुत शक्ति को पहचान लिए हैं। वह इंसान सब कुछ प्राप्त कर सकता है। जो इंसान सकारात्मक सोच वालेे होते हैं। वह जो भी इक्क्षा की कामना करते हैं। तो उस इच्छा को पूरी करने के लिए आसपास के लोग, आकाश-पाताल, वातावरण, यहां तक कि ब्रह्मांड भी उस सकारात्मक सोच या अच्छे विचारों वाले 
व्यक्ति की इक्क्षा पूरी करने के लिए, यह सारी ताकते इक्क्षा को पूरी करने में लगा देते हैं।


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सकारात्मक सोच के फायदे


जिस इंसान ने विचारों में शुद्धता और कार्य में निष्ठा रखते हो उस इंसान को अपने जीवनकाल में कभी कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ता है। अपने जीवन काल में कैसा भी परिस्थिति हो वह अपने आप को बेहतर रखते हैं।

सकारात्मक सोच का जादू (Magic of positive thinking)

सकारात्मक सोच का जादू (Magic of positive thinking)




सकारात्मक सोच की कला  


यह एक कला है। बखूबी सकारात्मक सोच की कला सभी इंसान को समझने की जरूरत है। जो इस कला को समझ गया। वह काफी खुशहाल और अच्छा व्यक्तित्व का इंसान बन चुका है। यह कला सीखना बहुत जरूरी है। इसके लिए आप मोटिवेशन बुक पढ़ सकते हैं।


विचारों में शुद्धता क्या है ? 


विचारों में शुद्धता को हम सीधे और आसान शब्दों में हम कह सकते हैं। अच्छा सोच वाले व्यक्ति हमेशा अपने जीवन में दूसरों के प्रति भलाई, सहायता या सहानुभूति रखते हैं। इस विचार वाले व्यक्ति जीवन में सफल होते हैं।


कार्य में निष्ठा क्या है ?


व्यक्ति अपने कर्मों पर विश्वास करते हैं। कर्मो पर विश्वास करने वाले, व्यक्ति ही जीवन में सफलता के सीढ़ियां चढ़ना आसान कर देते और एक अच्छे जीवन का शुरूआत करते हैं।


सकारात्मक सोच की कहानी


एक मित्र के जन्म दिन कुछ दिनों के बाद था। फिर एक दूसरे मित्र ने सोचा कि उसके जन्मदिन के अवसर पर, मैं सबसे बढ़िया उपहार दूंगा। लेकिन उसके पास पैसा नहीं था। फिर भी उसका सोच सकारात्मक था। जन्म दिन आते-आते उसके पास पैसा आ गया। और वह जन्म दिन के अवसर पर बहुत बढ़िया उपहार दिया। यह उसका सकारात्मक सोच का ही प्रभाव था कि उस लड़का के पैसा न रहते हुए, भी उसे पैसा कहीं ना कहीं से प्राप्त हो गया। उस पैसे को प्राप्त करने के लिए उसका सोच सकारात्मक था। यह सकारात्मक सोच का जादू (Magic of positive thinking) था। 

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निष्कर्ष -: सकारात्मक सोच का जादू (Magic of positive thinking) हमारे जीवन के लिए बहुत उपयोगी है। प्रत्येक मनुष्य को सकारात्मक सोच के महत्व केेे बारे में जानकारी होनी चाहिए। तथा सकारात्मक सोच के लाभ से प्रत्येक नागरिक को एक अच्छा इंसान बन सकते हैं।


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कन्या भ्रुण हत्या(female foeticide)

कन्या भ्रुण हत्या (female foeticide)     

भारत के अधिकांश हिस्सों में पढ़े लिखे लोगों की संख्या अधिक होने के बावजूद भी कन्या भ्रुण हत्या (female foeticide) क्यों ? इस विषय में सोचना अति आवश्यक है। हमारे समाज में बहुत सी कुरीतियां हैं इन कुरीतियों को दूर करने की जरूरत है। 

कन्या भ्रुण हत्या (female foeticide) अधिकांश हर वर्ग या समाज में हो रहे हैं। इसके लिए लोगों को जागरुक करना अति आवश्यक है, आज हम लोग कन्या भ्रुण हत्या (female foeticide) के बारे में जानेंगे।

कन्या भ्रुण हत्या (female foeticide) के कारण -:

लड़की के जन्म लेते ही माता-पिता पर बोझ हो जाती है। क्योंकि दहेज के रूप में उन्हें बहुत बड़ी रकम देना पड़ता है। इसकी वजह से वह कन्या भ्रुण हत्या (female foeticide) जैसे अपराध करने के लिए तैयार हो जाते हैं। इसके अलावा हमारे समाज के कुछ व्यभिचारी व्यक्ति अपने गंदे मनसे के साथ लड़कियों को हवस का शिकार बनाते हैं। जिस दिन यह दो सामाजिक बुराइयां खत्म हो जाएगा। फिर कोई कन्या भ्रुण हत्या (female foeticide) नहीं होगा।
                      
                      1) दहेज प्रथा
                      2)लड़कियों का सुरक्षा    

 कन्या भ्रुण हत्या (female foeticide) क्या है ? 

आज के इस महान वैज्ञानिकरण के तकनीक के कारण जन्म से पहले यह जान लेते हैं कि हमारे जीवन में आने वाला बच्चा लड़का या लड़की है। अब क्या होता है। यदि पेट में पल रहे बच्चा लड़की हुई, तो तुरंत ही कन्या भ्रुण हत्या (female foeticide) , गर्भपात या अन्य कारण से नष्ट करना निश्चित करते हैं। अगर लड़का हुआ तो खुशी से झूम कर मिठाइयां और पैसे बांटते हैं। 

यह लड़के और लड़कियों में अंतर करते हैं। अनपढ़ माता-पिता अधिकतर लड़के और लड़कियों में भेदभाव करते हैं। लेकिन कहीं-कहीं देखा जा रहा है कि पढ़े लिखे लोग भी लड़के और लड़कियों में भेदभाव करते रहते हैं।

एक ग्रामीण गांव में जब हम घूमने गए थे। तब वहां हमें पता चला कि लड़कों को प्राइवेट विद्यालय में पढ़ाते हैं। और लड़कियों को सरकारी स्कूलों में। क्योंकि उनका यह मानना है कि लड़का प्राइवेट में पढ़ेगा तो कुछ आगे बन जाएगा। लेकिन अधिकांश लड़कियां पढ़ने में बहुत तेज होती हैं। यहां हमारे समाज लड़का और लड़की में यह अंतर करते हैं।

भारत तकनीक क्षेत्रों में काफी तीव्र गति से प्रगति कर रहा है। बहुत से टेक्नोलॉजी का विकास हुआ। लेकिन आज भी बेटियों को लेकर हमारी सोच अब तक नहीं बदली। उस विकास के प्रयोग से हमें हमेशा सहायता ही मिला है। लेकिन इसका प्रयोग हम गर्भ में पल रही बेटी की हत्या के लिए इस विकास का उपयोग करना बेहतर समझा। यदि केवल बेटा ही बेटा यानि पुरुषों का समाज वहां महिला एक भी नहीं होंगी, तो हम अपने जीवन को आगे नहीं बढ़ा सकते।  क्योंकि जीवन  को आगे बढ़ाने के लिए स्त्री और पुरुष दोनों का होना अनिवार्य है। अगर केवल पुरुष ही समाज में रहेगा तो परिवार नहीं बन पाएगा। क्योंकि हमारे समाज में कन्या भ्रुण हत्या (female foeticide) बहुत तेजी से हो रहा है।

आज भी यहां के लोगों का विचार रुढ़िवादी है। सोच रुढ़ीवादी और कल्पना करते हैं। भारत एक विकसित देशों के श्रेणी में आए। यह तभी होगा जब सोच अच्छा होगा। हमारे समाज में आज भी लड़का और लड़की में भेदभाव किया जाता है। बहुत से माता-पिता भी लड़को और लड़कियों में अंतर करते हैं।

सामाजिक भेदभाव -: आज भी भारतीय समाज में एक गंदी सोच के कारण कन्या भ्रुण हत्या (female foeticide) निसंकोच ही कराते हैं। भारतीय समाज में औरतों को दबाव बनाकर उन महिलाओं से गर्भपात कराने के लिए मजबूर कराते हैं। कुछ महिलाएं स्वयं से भी गर्भपात कराने के लिए तैयार हो जाती हैं।


भारत में कन्या भ्रुण हत्या (female foeticide) के परिणाम -:

आज भारत में कन्या भ्रुण हत्या (femalefoeticide)
के कारण लिंगानुपात में बहुत कमी आई है। जिसके कारण भारत में 1000 पुरुष पर 940 महिलाओं की संख्या है। अगर राज्यो का निर्धारण करें, तो हरियाणा, पंजाब, गुजरात, बिहार आदि। राज्यों में लिंगानुपात में काफी कमी आई है।

कन्या भ्रुण हत्या (female foeticide) के परिणाम निम्न है।

लड़कियों की संख्या में कमी-: समाज से लड़कियों की संख्या में लगातार कमी दिख रही है। शादी के लिए लड़कियों की संख्या में काफी कमी है। हरियाणा के लिंगानुपात 1000 पूरुष पर 798 महिला है। बहुत लड़को की शादी नहीं हो पाएगा। कन्या भ्रुण हत्या(female foeticide) का परिणाम है।

महिलाओं में अनेकों रोग का कारण -: यदि एक महिला गर्भपात कराती है, तो उसका शरीर कमजोर हो जाता है। कमजोरी के कारण अनेकों रोग पकड़ लेता है। जिस कारण अधिकांश कन्या भ्रुण हत्या (female foeticide) के दौरान ही उनकी मृत्यु हो जाती है।

कन्या भ्रुण हत्या (female foeticide) पर कानून -:

भारत सरकार के द्वारा लाख कोशिश करने के बाद भी कन्या भ्रूण हत्या में कमी नहीं आई। कन्या भ्रुण हत्या (female foeticide) एक दंडनीय अपराध है। भारत सरकार द्वारा कानून बनाया गया है कि गर्भ में लिंग का पता लगाना एक कानूनी रूप से दंडनीय अपराध है। यदि किसी महिला को गर्भ जांच ने के लिए मजबूर किया गया तो उस महिला को सजा नहीं दिया जाएगा। लेकिन जो व्यक्ति मजबूर करते हैं। उन्हें सरकार द्वारा तीन साल की सजा और ₹10000 जुर्माना देना पड़ता है। डॉक्टर के क्लीनिक में किसी महिला को गर्भपात कराते पकड़े जाने पर उनका लाईसेंस खत्म ,जुर्मना और कड़ी सजा हो सकता है।

निष्कर्ष -: भारतीय समाज में कन्या भ्रुण हत्या (female foeticide) अपने चरम पर है। जिस कारण लड़की की संख्या में कमी होना निश्चित है। एक ऐसा समाज का निर्माण होगा कि केवल लड़कों की संख्या में वृद्धि होते जाऐगा। और नारी विहीन समाज की स्थापना हो जाएगा। ऐसे बहुत विडंबना है कि हमारे समाज में स्त्रियों को देवी के रूप में पूजा जाता है। लेकिन वहीं समाज कन्या भ्रुण हत्या (female foeticide) करके लोग अपराध भी कर रहे हैं। इसे रोकने के लिए समाज की दो गंंदे कुरीतियों को दूर करना होगा।

                      1) दहेज प्रथा
                      2)लड़कियों का सुरक्षा 

जिस दिन समाज में दहेज प्रथा और लड़कियों का सुरक्षा के लिए समाज और जन मानस तैयार हो जाता है। उस दिन से कन्या भ्रुण हत्या (female foeticide) खत्म होना निश्चित है।

जनसंख्या को कैसे नियंत्रण करें ( How to control population.)

     जनसंख्या को कैसे नियंत्रण करें।
 ( How to control population.)

आज विश्व के सामने अगर सबसे बड़ी चुनौती है, तो वह है जनसंख्या को कैसे नियंत्रण करें। ( How to control population.) यदि जनसंख्या पर नियंत्रण हो जाए तो वह सारी सुविधाएं हमें प्राप्त होने लगेंगे। जो हमें नहीं प्राप्त हो रहे हैं। जैसे -: नौकरी, उद्योग, कृषि एवं बेरोजगारी आदि। यही नहीं कृषि उत्पाद खाने से अधिक होने लगे तो बाहर के देशों में बेचा भी जा सकता है। जिससे देश आर्थिक रुप से संपन्न हो सकता है। और विकसित देशों की श्रेणी में आ सकता है।

जनसंख्या वृद्धि क्या है ?

एक निश्चित भू भाग पर रहने वाले मनुष्यों में अधिक मनुष्य हो जाना ही जनसंख्या वृद्धि कहलाता है। जिस कारण निश्चित भू भाग निश्चित ही रहेगा। जन मानस की संख्या बढ़ेगा, तो निश्चित भूभाग नहीं बढ़ेगा। क्योंकि जनसंख्या बढ़ने का मतलब उस निश्चित भू भाग में कमी, उस कमी को पूरा करने के लिए इंसान खेती योग्य भूमि पर निवास करना अनिवार्य हो जाता है। अब खेती योग्य भूमि की कमी होना स्वभाविक है। यदि खेती न होने पर मानव के लिए गेहूं, चावल और अनाज की कमी हो जाना निश्चित है। इसलिए जनसंख्या को कैसे  नियंत्रण करें।

जनसंख्या वृद्धि के कारण-:

शिक्षा के अभाव -: अधिकांश लोग शिक्षा के अभाव में ही जनसंख्या में वृद्धि करते हैं। क्योंकि शिक्षा नहीं होने के कारण व्यक्ति को समझ नहीं होता है। यदि वह शिक्षित है तो इस बात पर बहुत गंभीरता से सोचता है, कि अधिक जनसंख्या या अधिक बच्चे को जन्म देने से बढ़िया है, कि एक या दो बच्चे को पालन पोषण सही ढंग से किया जाए। क्योंकि इतनी महंगाई में अधिक जनसंख्या बढ़ाना मूर्खता है।

बेरोज़गारी -: जनसंख्या वृद्धि का मुख्य कारण बेरोजगारी है। क्योंकि बेरोजगार व्यक्ति का कोई काम धंधा नहीं होने के कारण अधिकांश समय इधर-उधर घूमते या घर में ही रहते हैं। घर में रहने के कारण अधिकांश समय वे अपनी परिवार के साथ रहते हैं। जिस कारण जनसंख्या में वृद्धि हो जाता है। क्योंकि उनके पास मनोरंजन का कोई साधन नहीं है। ऐसा अधिकतर गरीब परिवार में ही देखने को मिलता है।

समझदारी की कमी -: कुछ ऐसे महानुभाव होते हैं। जिनके पास शिक्षा और रोजगार होने के बाद भी लगातार जनसंख्या में वृद्धि करते रहते हैं। क्योंकि वह बच्चे को जन्म देते रहते हैं। और कहते हैं, कि वह अपने भाग्य लेकर आया है। भगवान की देन या अल्लाह की देन भी कहा करते हैं। जिस कारण जनसंख्या में वृद्धि होना लाजमी है। इसमें मनुष्य को अपनी समझदारी का प्रयोग करना चाहिए।

जनसंख्या वृद्धि के दुष्परिणाम -: 

जनसंख्या वृद्धि के दुष्परिणाम बहुत ही भयानक है। इसे अनेकों समस्याएं उत्पन्न होती है। वैसे आज कोई ऐसा शहर नहीं जहां की सड़कों पर जाम न लगता हो। प्रतिदिन सड़कों पर जाम मिलता है। आवागमन में घंटों जाम में फंसा रहना। जनसंख्या वृद्धि के कारण मनुष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए खेती योग्य भूमि की कमी होना, पर्यावरण को हानि पहुंचाना, पानी की कमी, ऊर्जा की कमी, पृथ्वी के ताप में वृद्धि आदि प्रमुख दुष्परिणाम है।

 मनुष्य की आवश्यकताएं-: जैसे-जैसे जनसंख्या में वृद्धि हो रहा है। वैसे-वैसे मनुष्य की आवश्यकताएं भी बढ़ रहा है। मनुष्य की आवश्यकताओं के लिए जंगलों को काट कर घर बनाना, ऊर्जा की खपत, खेती योग्य भूमि पर भवन निर्माण
के कारण उत्पादन में कमी, कोयले से तापीय विद्युत उत्पन्न करना, रोजगार एवं नए अवसर आदि की आवश्यकता, मनुष्यों के लिए बहुत जरूरी है।

पर्यावरण पर प्रभाव -: जनसंख्या वृद्धि के कारण पर्यावरण पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। पृथ्वी के ताप को बनाए रखने के लिए एक निश्चित क्षेत्र में वनों का होना आवश्यक है। क्योंकि पेड़ों की कटाई आना धुन, दिन-प्रतिदिन होते जा रहा है।और
कल कारखाने, मोटरसाइकिल, चिमनी एवं गाड़ीयों आदि से हानिकारक गैसे निकल रहा है। जिससे कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड, क्लोरो फ्लोरो कार्बन आदि के कारण पृथ्वी के ताप में लगातार वृद्धि होते जा रहा है।

 वैमनस्य की प्रवृति-: जनसंख्या वृद्धि के कारण रोजगार या नौकरी के अवसर न होने से लोगो में वैमनस्य की प्रवृति या अपराध ज्यादा बढ़ गया है। अधिकतर रात या सुनसान जगहों पर छीन झपट होते रह रहा है। यह सब जनसंख्या वृद्धि के कारण ही हो रहा है।

 जनसंख्या नियंत्रण कानून -:

किसी भी देश के लिए जनसंख्या वृद्धि कानून बनाना अति महत्वपूर्ण है। क्योंकि सीमित संसाधन है, तो सीमित संख्या भी होना चाहिए। सरकार को इसके लिए एक बहुत ही कठोर कानून व्यवस्था लागू करना चाहिए। जिससे आम नागरिकों एवम खास नागरिकों को डर बना रहे।

जनसंख्या को कैसे नियंत्रण करें ( How to control population.)-:


जनसंख्या वृद्धि नियंत्रण करने की उपाय निम्न है -: 


गर्भ निरोधक

शिशु मृत्यु दर में कमी

बंध्याकरण

संभोग स्थगन

गर्भपात

एक शिशु पद्धति अपनाना

छोटा परिवार खुशहाल परिवार

निष्कर्ष-: आज भारत की जनसंख्या विश्व में दूसरे नंबर पर है। यह कुछ ही वर्षों के बाद यह विश्व में जनसंख्या की दृष्टि से एक नंबर पर हो जाएगा। आज भारतीय सरकार एवं जनता  को जागरुक होना अति आवश्यक है। क्योंकि जब तक भारतीय लोग को समझ में आएगा कि जनसंख्या वृद्धि खतरनाक है। तब तक बहुत देर हो जाएगा। इसके लिए कठोर कानून एवं अनेक कार्यक्रम के तहत जनता को प्रोत्साहित करना चाहिए। ऐसे कोई भी सरकार हो जनसंख्या नियंत्रण पर ध्यान देने ही चाहिए। उसके साथ साथ जनता को भी जनसंख्या नियंत्रण पर ध्यान देना अति आवश्यक है।

तो इस लेख में जनसंख्या को कैसे नियंत्रण करें ( How to control population.) के बारेे जानकारी मिली।


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स्वच्छ भारत अभियान को कैसे सफल बनायें (7 प्रभावी तरीके ) How To Make A Clean India Campaign Successful ( 7 Effective Ways)

स्वच्छ भारत अभियान को कैसे सफल बनायें (7 प्रभावी तरीके ) How To Make A Clean India Campaign Successful ( 7 Effective Ways)


भारत सरकार के द्वारा 2 अक्टूबर 2014 के महात्मा गांधी के 145 वी जन्मदिवस के अवसर पर स्वच्छ भारत अभियान को कैसे सफल बनायें ( 7 प्रभावी तरीके) की शुरुआत। माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के कर कमलों द्वारा प्रतिपादित किया गया। उन्होंने भारत को स्वच्छ बनाने के लिए देशवासियों को संबोधित किया। इस अभियान में ग्रामीण क्षेत्रों में खुले में शौच एवं साफ सफाई पर ध्यान देने के लिए कहा गया।
स्वच्छ भारत अभियान को कैसे सफल बनायें (7 प्रभावी तरीके )
स्वच्छ भारत अभियान को कैसे सफल बनायें (7 प्रभावी तरीके )

ऐसे मुख्य रूप से खुले में शौच मुक्त भारत बनाने का सपना महात्मा गांधी ने देखा था। महात्मा गांधी जी के द्वारा खुले में शौच एवं साफ-सफाई को देखकर हमेशा चिंतित रहते थे। और उन्होंने अपनी कार्यक्रम में हमेशा खुले में शौच एवं साफ-सफाई के महत्वों के बारे में बताया करते थे। वह हमेशा स्वच्छता के प्रति तत्पर रहते थे। वह स्वयं साफ-सफाई करते रहते थे।  इस अभियान को  2 अक्टूबर 2019 तक महात्मा गांधी की 150 वी जयंती के अवसर पर खुले में शौच मुक्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया। इसमें कई करोड़ रुपए की लागत से शौचालय का निर्माण कराया गया।

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कहा जाता है कि स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है। यह तब होगा जब आप स्वस्थ रहेंगे। स्वस्थ रहने के लिए स्वच्छ रहना होगा। स्वच्छता संबंधी कार्य के लिए कर्मचारी एवं शिक्षकों को स्वच्छ भारत बनाने के उद्देश्य के लिए कार्यो में लगाया गया था। swachh bharat mission gramin के लिए प्रत्येक पंचायत के गांव  में सामुदायिक शौचालय निर्माण कराया गया। इसके अलावा गरीबों के लिए के घर-घर शौचालय का निर्माण कराया गया।

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स्वच्छ भारत अभियान को कैसे सफल बनायें ( 7 प्रभावी तरीके)  निम्न है -:


➡️बीमारियों को दूर करना-:  जहां गंदगी रहता है, वहां अनेकों बीमारियां होती हैं। इसलिए स्वच्छता एवं साफ सफाई पर हमेशा ध्यान देना चाहिए। अपने घर को साफ रखें। अपने बाहर अगल बगल साफ सुथरा रखें। जिससे कि जल्दी कोई बीमार न पड़े। अगर आप स्वस्थ हैं, तब तो सब ठीक है। अन्यथा बीमार पड़ने पर सब बेकार है।

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➡️स्वच्छ भारत स्वस्थ भारत पर भाषण-: अगर समाज , राज्य एवं देश को विकसित करना चाहते हैं, तो स्वच्छ भारत स्वस्थ भारत का निर्माण करना अति आवश्यक होगा। केवल भाषणबाजी पर काम नहीं चलेगा। स्वच्छ भारत का निर्माण करने का सपना अगर देखा गया है तो उसको पूरा करने के लिए प्रत्येक जनता को जागरूक होना अति आवश्यक होगा। जब तक जनता जागरूक नहीं होगा। तब तक कुछ नहीं होगा। क्योंकि अकेले चना भाड़ नहीं फोड़ता। इसलिए हमारे समाज को हमेशा तत्पर रहना होगा।

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➡️ओलंपिक एवं अन्य खेल में भारतीय खिलाड़ियों का प्रदर्शन -: भारतीय खिलाड़ी अधिकतर ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करते हैं। उन खिलाड़ियों की आदत खुले में शौच करने का होता है। ओलंपिक खेल या अन्य खेल विदेशों में होता है।
खुले में शौच नहीं जा पाने के कारण उनका शौच ठीक ढंग से नहीं हो पाता है। इस कारण भारतीय खिलाड़ी पिछड़ जाते हैं। इसका मूल कारण यही है। इसलिए शौचालय निर्माण करके, बचपन से ही आदत लगाएं, शौचालय में जाने के लिए, इससे बहुत लाभ होगा।

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➡️ लड़कियों एवं महिलाओं का सम्मान -: अधिकांंश ग्रामीण क्षेत्रों की लड़कियों एवं महिलाएं खुले में शौच जाने के लिए मजबूर थी। जिन महिलाओं को सुबह या किसी समय शौच जाना हो, तो वह अंधेरे का इंतजार करना पड़ता था। इस तरह अधिक देर तक शौच को रोकने से कई तरह की बीमारियां उत्पन्न हो जाता। जब से खुले में शौच मुक्त भारत बनाने के लिए कहा गया है। उस समय से अधिकांश महिलाएं एवं लड़कियां खुश नजर आती हैं। अब उनका भी सम्मान मिल गया।

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➡️लड़कियों को बीच में पढ़ाई छोड़ देना-:  स्कूल में शौचालय का व्यवस्था नहीं रहने के कारण छात्राएं  विद्यालय आना छोड़ देंगी। जिस कारण उनका पढ़ाई बीच में ही छोड़ना पड़ेगा। प्रत्येक विद्यालय में लड़को और लड़कियों के  लिए अलग-अलग शौचालय होना चाहिए। जिस कारण छात्राएं अपनी पूरी पढ़ाई आजादी से कर सकें।


➡️विद्यालय में साफ-सफाई-: विद्यालय में के मैदानों की साफ सफाई,पेड़ पौधों की देखभाल, प्रयोगशाला की साफ-सफाई, कमरों, पुस्तकालय एवं शौचालय की साफ सफाई पर ध्यान देना अति आवश्यक है। इसके लिए शिक्षक एवं बच्चे का योगदान सुनिश्चित होना चाहिए।


➡️स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण (swachh bharat mission gramin) -:  गांव हो या शहर अधिकतर लोग अपने घरों को तो साफ सुथरा रखते हैं। लेकिन साफ सुथरा करने के बाद कचरा कहीं भी फेंक देते हैं। जिससे गंदगी फैलता है। गंदगी से बीमारी फैलता है।
                    ऐसे निर्मल भारत अभियान कार्यक्रम ग्रामीण क्षेत्रों में चलाया जाता था। अब वह स्वच्छ भारत अभियान में जोड़ दिया गया है। इन अभियान का लक्ष्य शौचालय निर्माण करना है।


निष्कर्ष -:  स्वच्छ भारत अभियान एक राष्ट्रीय स्तर का अभियान है। इस अभियान में ग्रामीण क्षेत्रों में शौचालय निर्माण, सड़कों की साफ-सफाई तथा अपने आसपास गंदगी न फैलाने देने के लिए कई कार्यक्रम को चलाया गया। इस कार्यक्रम के माध्यम से जनता को जागृत कर सरकार का साथ देना अति महत्वपूर्ण है। ग्रामीण क्षेत्रों में शौचालय निर्माण से प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी को भारत के करोड़ो महिलाओं एवं लड़कियों की दुआएं एवं प्रसंशा मिला होगा। महिलाओं का स्वास्थ्य खराब हो जाता और वह अपनी जिंदगी अच्छी तरह से व्यतीत कर सकती हैं। महिलाओं को सम्मान मिलना, यह एक जरूरी कदम था।

स्वच्छ भारत अभियान को कैसे सफल बनायें (7 प्रभावी तरीके )
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