व्यक्तित्व के निर्माण में विद्यालय का योगदान।School's contribution in building personality


व्यक्तित्व के निर्माण में विद्यालय का योगदान।School's contribution in building personality.


प्रत्येक व्यक्ति में अपनी एक अलग पहचान या गुण होता है। एक दूसरे व्यक्ति के वह गुण या पहचान, किसी दूसरे व्यक्ति में नहीं होता है। प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे से भिन्न होता है। हर इंसान का अपना अलग-अलग विशिष्ट पहचान होता है। इसी पहचान या गुण के कारण उस व्यक्ति का व्यक्तित्व होता है। हर इंसान अलग-अलग कद काठी रंग एक दूसरे से भिन्न होते है। इसके स्वभाव संस्कार आदि में भिन्नता होता है। 

एक बालक के व्यक्तित्व के निर्माण में परिवार से कहीं अधिक समाज के वातावरण का प्रभाव पड़ता है। बच्चे के गुणों के निर्माण में परिवार की भूमिका अहम होता है। बच्चों के प्रथम पाठशाला परिवार होता है। उस परिवार के प्रथम शिक्षक मां होती हैं। मां ही बच्चों के व्यक्तित्व के को निखारती हैं। मां घर में ऐसा वातावरण का निर्माण करती है कि बच्चे के व्यक्तित्व सृजनात्मक एवं गुणात्मक होता है। उसी समय से बच्चों में अनेकों ऐसे गुणों का विकास होता है। अगर यही गुण रह जाए तो निश्चित ही बच्चे अपने जीवन में व्यक्तित्व के धनी, आत्मविश्वासी, दृढ़ पराक्रमी हो जायेंगें। लेकिन बच्चे बड़े होते ही समाज से बहुत कुछ सीखने लगते हैं।  

बच्चों के व्यक्तित्व के निर्माण में विद्यालय के शिक्षा अति आवश्यक है। विद्यालय के वातावरण से बच्चों के व्यक्तित्व के निर्माण में अधिक प्रभावशाली होता है। यदि बच्चे को विद्यालय में अनुकूल वातावरण प्राप्त हो तो वे सही दिशा में कदम रख सकते हैं। या वह अपने को प्रगति के पथ पर अग्रसर होते जाते हैं। 

व्यक्तित्व के निर्माण में विद्यालय का योगदान।School's contribution in building personality.


व्यक्तित्व के निर्माण में विद्यालय का योगदान।School's contribution in building personality.





यदि विद्यालय का अनुकूल वातावरण न रहा तो योग्य एवं होनहार बच्चे का व्यक्तित्व से वंचित हो जाते हैं। यदि बच्चे निम्न स्तर की योग्यता  रखने वाले बच्चों को अच्छे वातावरण के अनुसार योग बनाया जा सकता है। विद्यालय के वातावरण के अनुसार बच्चों को योग एवं गुणकारी बनाया जा सकता है। बच्चे की योग्यता एवं क्षमता कैसा भी हो, वह विद्यालय के अच्छे वातावरण जैसा ही होगा।

विद्यालय के अच्छे वातावरण में बच्चों की अच्छी आदतों का विकास  भी होता है। जिससे विद्यालय बच्चों को प्रभावित भी करता है। उनके व्यक्तित्व के निर्माण में परिवर्तन लाता है। विद्यालय के वातावरण से बच्चों में नैतिक विकास, शारीरिक विकास, मानसिक विकास, सामाजिक विकास के स्तर को ऊंचा उठाता है, ताकि वे परिवार समाज एवं विद्यालय में अपने आपको समायोजित कर सके।

विद्यालय में वातावरण को अच्छी तरीके से प्रभावित करने में शिक्षक की भूमिका महत्वपूर्ण होता है। जिससे बच्चों में सही मार्गदर्शन एवं प्रोत्साहन मिलता है। जिससे बच्चों में व्यक्तित्व का निर्माण होता है।

इसके फलस्वरूप कुछ बच्चों में कुंठा से ग्रसित होते हैं। शिक्षक के अच्छे आत्मीय व्यवहार के कारण धीरे-धीरे उन बच्चों को जो कुंठित के शिकार होते हैं। उनको उचित मार्गदर्शन एवं प्रोत्साहन के कारण  बच्चे अच्छे कर पाते हैं। बच्चें शिक्षक के प्रति स्नेह, आदर का भाव अपने दिल में रखने लगते हैं। इससे बच्चों में व्यक्तित्व एवं चरित्र का निर्माण होता है। 

विद्यालय में मानसिक स्वास्थ्य एवं शारीरिक स्वास्थ्य होना बहुत ही जरूरी होता है। विद्यालय के व्यक्तित्व में ज्ञान, कौशल एवं दृष्टिकोण का होना अति आवश्यक है। जिससे बच्चों में अनुशासन विकसित होता है। 

बच्चों में आत्म संयम, सहयोग, आपसी विचार एवं भाव आदि के गुणों को विकसित करने में सहायक होते हैं। विद्यालय को उत्तम स्वरूप देने के लिए बाल केंद्रित मनोविज्ञान की अवधारणा होना चाहिए। जिससे बच्चे विद्यालय की ओर आकृष्ट होते और सीखने में उनकी प्रेरणा मिलता है। 

विद्यालय का वातावरण स्वच्छ होना अति आवश्यक है। तभी बच्चों का मन प्रसन्न होता है। शिक्षक को विद्यालय के वातावरण को आनंददायक और कक्षा कक्ष को भी आनंदित बनाने अति आवश्यक होता है। ताकि व्यक्तित्व के निर्माण में विद्यालय का योगदान महत्वपूर्ण है।
School's contribution in building personality.





















उचित मार्गदर्शन और प्रोत्साहन प्रतिभा को निखारता है।Proper guidance and encouragement enhances talent.

उचित मार्गदर्शन और प्रोत्साहन प्रतिभा को निखारता है।(Proper guidance and encouragement enhances talent.)


जब विद्यार्थी सफलता का मुकाम हासिल करना चाहता है, या अपने जीवन को सफल करने के लिए जो उड़ान भरना चाहता है। उससे पूर्व अभिभावक व शिक्षक उचित मार्गदर्शन एवं प्रोत्साहन उसके प्रतिभा को अवश्य ही निखारता है। 

अभिभावक व शिक्षक छात्रों के सुनहरे भविष्य के लिए उचित मार्गदर्शन दे सकते हैं। जिससे छात्रों के शरीर के अंदर, ऊर्जा उत्साह, जोश, एवं जुनून का संचार उत्पन्न होता है। जिससे विद्यार्थी जीवन में सफलता प्राप्त होता है।

हमेशा से ही देखा गया है कि छात्रों को विषय का चुनाव सही ढंग से नहीं कर पाते। कई छात्र-छात्राओं को देखा गया है कि बिना सोचे समझे विषय का चुनाव कर लेते हैं। बहुत सारे विद्यार्थी अपने दोस्तों, रिश्तेदार, भाई बहन को देखकर विषयों का चुनाव करते हैं। फिर बाद में उनको समझ आता है कि विषय का चुनाव गलत हो गया। बहुत से छात्र अपने अभिभावक या माता-पिता के दबाव में आकर विषय का चुनाव करते हैं। जिसके फलस्वरूप छात्रों को आगे चलकर वह विषय बोझिल  या उबाऊ लगने लगता है। कई छात्र-छात्राओं एक दूसरे के देखा देखी में विषयों का चुनाव करते हैं। जिस कारण उनको आगे समझ में नहीं आता या समझना मुश्किल हो जाता है।

जिस विद्यार्थी ने अपने विषय का चुनाव सोच समझ कर लिया है या उस विषय में वह ज्ञान या रूचि रखता है, तो वह विद्यार्थी हमेशा ही सफल होगा।

अभिभावक एवं शिक्षक को छात्रों एवं विद्यार्थियों को बीच-बीच में उचित मार्गदर्शन एवं प्रोत्साहन देते रहें, ताकि अभिभावक
एवं शिक्षक को यह पता चलता रहे, कि विद्यार्थी लक्ष्य प्राप्त करने में सक्षम है या नहीं। अगर नहीं, तो विद्यार्थी को उचित मार्गदर्शन करने की जरूरत होता है। ताकि उचित मार्गदर्शन से छात्र अपने जीवन में लक्ष्य की प्राप्ति कर सके।

हमारे समझ से उचित मार्गदर्शन एवं प्रोत्साहन अपने बच्चों को शुरुआती दिनों यानी 3 से 5 वर्ष के उम्र में ही शुरू करना चाहिए ताकि आगे अपने जीवन में हमेशा ही सफलता के मुकाम को हासिल कर सके।

लेकिन एक और बात यह है कि कोई जरूरी नहीं है कि 3 से 5 वर्ष के उम्र ही हो। आप जब चाहे तब से ही अपने बच्चों या छात्रों को उचित मार्गदर्शन कर सकते हैं। वहां मैं कम उम्र इसलिए कहा कि बच्चें को शुरुआत से ही उचित मार्गदर्शन देते रहे तो अपने जीवन में हर समय क्रियाशील रहेंगे।

अधिकांशतः विद्यार्थी 10वीं परीक्षा के बाद ही अपने लक्ष्य या सफलता को लेकर चिंतित रहते हैं। इस समय अभिभावक एवं शिक्षक को मार्गदर्शन एवं प्रोत्साहन नितांत ही आवश्यक है और समय उचित सलाह देना जरूरी होता है, क्योंकि बहुत सारे विद्यार्थी को उचित मार्गदर्शन प्राप्त न होने के बावजूद वह गलत रास्ते पर चल पड़ते हैं तथा विद्यार्थी अपने नैतिक पतन की ओर चल देते हैं। वे अपने जीवन जीने के लिए गलत तरीकों को अपनाते चले जाते हैं। इससे अपना जीवन बर्बाद कर लेते हैं। इसलिए ऐसे समय में हर अभिभावक एवं शिक्षक को बच्चों एवं छात्रों को उचित मार्गदर्शन एवं प्रोत्साहन देना अति आवश्यक है। 
निष्कर्ष :-  उचित मार्गदर्शन एवं प्रोत्साहन प्रतिभा को निखारता है। हमें अपने बच्चे एवं विद्यार्थी को बचपन से ही उचित मार्गदर्शन देना चाहिए। ताकि भविष्य में अपने जीवन को उस ऊंचाई पर ले जा सके। जहां से पीछे दिखने पर सभी छोटे या बौने रूपी दिखें। शिक्षक का कार्य केवल यह नहीं है कि शिक्षा देना, अपितु विद्यार्थियों का सर्वांगीण विकास हो। अगर विद्यार्थी का सर्वांगीण विकास होगा। तब विद्यार्थी का जीवन सफल होता है। उचित मार्गदर्शन एवं प्रोत्साहन प्रतिभा को निखारता है। इसलिए हम कह सकते हैं कि उचित मार्गदर्शन एवं प्रोत्साहन प्रतिभा को निखारता है। यह निश्चित तौर पर महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 

दाखिल खारिज कराने हेतु आवेदन पत्र

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