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आदर्श अध्यापक के कर्तव्य (Duties of the ideal teacher)

आदर्श अध्यापक के कर्तव्य (Duties of the ideal teacher)

समाज निर्माण में शिक्षकों की भूमिका महत्वपूर्ण होते हैं ।क्योंकि विद्यालय समाज के प्रांगण में आते हैं, बच्चे उसी समाज के हिस्से होते हैं। प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक जैसा कार्य करते हैं, यानी आदर्श अध्यापक के कर्तव्य(Duties of the ideal teacher)को देखकर बच्चे सीखते हैं। अध्यापक बच्चों को अच्छी शिक्षा के साथ-साथ ,एक अच्छे नागरिक बनने के लिए प्रेरित करते हैं।

               आदर्श शिक्षक समय का सही सदुपयोग करते हैं। बच्चों के समय की महत्व के बारे में बताते हैं। समय के अनुसार सुनियोजित, योजनाबद्ध तरीके से विषय का पूर्ण ज्ञान कराते हैं। जिससे बच्चों को अच्छी तरह  से अधिगम करा सकें।
               आदर्श अध्यापक के कर्तव्य (Duties of the ideal teacher) है कि उनके व्यवहार में नम्रता एवं विनम्रता का भाव हो, उनमें सहजता गंभीरता एवं विद्वता झलकता हो ,उनकी वाणी ऐसी हो कि बच्चे के मन को जीत ले ।
               वैसे तो शिक्षक का पद अत्यंत गरिमा पूर्ण होता है, क्योकिं "जिस प्रकार खेती के लिए बीज, खाद एवं उपकरण के रहते हुए, अगर किसान नहीं हैं, तो सब बेकार है।उसी प्रकार विद्यालय के भवन, शिक्षण सामग्री एवं छात्रों के होते हुए, शिक्षक नहीं हैं तो सब बेकार है।" शिक्षक शब्द तीन अक्षरों के मेल सेे बना है लेकिन शिक्षक का अर्थ व्यापक है।

                        शि-सीखाने वाले।
                        क्ष-क्षमा करने वाले।
                        क- कामयाबी पर पहुंचाने ।

अर्थात् सीखाने वाले, क्षमा करने एवं कामयाबी प्रदान कराने वाले शिक्षक आत्मज्ञानी एवं महान होते हैं।

            आदर्श अध्यापक (The ideal teacher) के निम्न गुण होते हैं-:

1) समय का पालन करना।

2) नम्र भाषा का प्रयोग करना।

3) सहयोग की भावना।

4) जाति एवं धर्म की बातें ना करना।

5) विषय का पूर्ण ज्ञान।

6) इमानदारी पूर्वक कक्षा कक्ष का संचालन।

7) सृजनात्मक होना।

8) क्रियात्मक एवं रचनात्मक होना।

1)समय का पालन करना-: वो हर कामयाब इंसान जो आज सफलता  के उस मंजिल को प्राप्त किये हैं। वे समय का पालन करके ही उस मंजिल को प्राप्त किये है। जो इंसान समय का कद्र किया,समय भी उसका कद्र किया है, इसलिए समय का पालन बच्चों को सीखाना बहुत जरूरी है। ऐसे अध्यापक समय का ध्यान रखें तो बच्चे उनके अनुकरण से ही सीखते हैं।

2) नम्र भाषा का प्रयोग करना-: अध्यापक को कक्षा कक्ष में या कहीं भी नम्र भाषा का प्रयोग करना चाहिए। ऐसे भी नम्र भाषा का प्रयोग कर के कठिन से कठिन कार्य आसानी से करवाया जाता है। छात्र/ छात्रा को भी नम्र भाषा का ज्ञान कराना चाहिए।

3) सहयोग की भावना-: अगर विद्यालय को सुचारू रुप से चलाना चाहते हैं, तो सहयोग की भावना शिक्षको में होनी चाहिए। जिसे देख कर बच्चे भी आपस में  सहयोग करने की भावना सीखेगें।

4) जाति एवं धर्म की बातें ना करना-: किसी भी अध्यापक का कोई जाति नहीं होता है। उसका एक ही जात है वह शिक्षक। एसे पूरी  ईमानदारी एवं निष्ठा पूर्वक विषय के ज्ञान कराते हुए ,पढ़ाना चाहिए और कक्षा कक्ष में या कहीं भी जाति या धर्म संबंधित बातें नहीं करना चाहिए। यह शिक्षक को शोभा नहीं देता।

5) विषय का पूर्ण ज्ञान-: जो विषय पढ़ाना है, उस विषय के अध्याय को पहले से पढ़कर विद्यालय जाएं, ताकि बच्चे को उस 40 से 45 मिनट के समय अंतराल में आप अच्छे तरीके से बिना इधर-उधर बातें करते हुए प्रभावी ढंग से बच्चे को अधिगम करा सके।

6) इमानदारी पूर्वक कक्षा कक्ष का संचालन-: कक्षा का संचालन पूरे आत्मविश्वास के साथ करना चाहिए । ताकि बच्चे ध्यान पूर्वक सुने एवं पूरी निष्ठा के साथ पढ़े।

7) सृजनात्मक होना-: अगर अध्यापक सृजनशील हैं , तो बच्चे भी सृजनशील होंगे। क्योंकि अध्यापक बच्चों को सृजनशीलता के बारे में बताते रहते हैं। इससे बच्चे सृजनशील रहते हैं। बच्चों में धीरे धीरे सृजनशीलता आने लगती है।

8) क्रियात्मक एवं रचनात्मक होना-: अध्यापक कक्षा में बच्चों को क्रियात्मक एवं रचनात्मक विधि से सिखाते हैं तो सीखा गया ज्ञान हमेशा मददगार होता है। बच्चों में जरूरी है कि वह खुद से प्रयोग करके ज्ञान अर्जित करे।

निष्कर्ष-: आदर्श अध्यापक के कर्तव्य(Duties of the ideal teacher) बहुत ही महत्वपूर्ण होते हैं। वह आत्मविश्वासी ,सृजनशील कर्मो पर विश्वास, नम्र , सरल एवं सीधा स्वभाव के होते हैं । वह सहजतापूर्ण अपने विषयों के ज्ञान छात्र-छात्रों तक आसानी से पहुंचते हैं।विद्यालय के छात्र छात्राओं के साथ खेल-खेल में अधिगम कराते हैं । वह समय पर विद्यालय आते हैं, समय पर सब काम करते हैं। वह समय के महत्व के बारे में विद्यालय के बच्चों को बताते हैं, वह कहते हैं कि एक - एक मिनट कीमती है , जितना हो सके उतना ज्ञान अर्जित कर लो।(Time is money) समय ही धन है।
                                 बच्चों के संग चेतना सत्र में भाग लेते हैं। वह अपना काम शीघ्र खत्म कर के किसी और के भी कामों में हाथ बटा देते हैं । वे हमेशा आगे की सोच रखते हैं।वह आज का काम कल पर नहीं छोड़ते हैं। वह हमेशा अपने कामों का एक सूची बनाकर रखते हैं। जो काम कर लिए ,उस सूची  में सही का निशान लगा लेते हैं। उनके व्यवहार इतने अच्छे हैं कि वह किसी भी संस्था में आसानी से अपने जगह बना लेते हैं। उनके चेहरे पर हमेशा मुस्कान झलकता है  वह व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति होते हैं। वे हमेशा नम्र भाषा का प्रयोग करते हैं। वह हमेशा फॉर्मल कपड़े पहनते हैं उनका पहनावा एक सीधा सदा होता है। उनसे बच्चे हमेशा खुश रहते हैं, क्योंकि विषय के ज्ञान कक्षा को देखते हुए पढ़ाते हैं।

भारत को विकसित देश बनाने में नागरिकों का योगदान (Citizens' contribution to making India a developed country)

भारत को विकसित देश बनाने में नागरिकों का योगदान (Citizens' contribution to making India a developed country)




भारत को विकसित देश बनाने में नागरिकों का योगदान (Citizens' contribution to making India a developed country) महत्वपूर्ण है। अगर जनमानस का साथ रहा तो भारत को विकसित देश बनाने से कोई नहीं रोक सकता है।

वैसे विकसित देशों के इतिहास उठाकर देखें तो पता चलता है कि प्रत्येक जनता देश को विकसित करने के लिए अपना पूरा सहयोग एवं बहुमूल्य समय देते हैं। प्रत्येक नागरिक सदैव तत्पर रहते हैं कि उनका देश कैसे विकसित हो।


भारत को विकसित देश बनाने में नागरिकों का योगदान (Citizens' contribution to making India a developed country)


पढ़े लिखे समझदार लोग अपनी पढ़े-लिखे होने का सबूत देते हैं। कहां तो मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर, गुरुद्वारा, में जाकर अपनी मनोकामना पूर्ण करते या लाखो के दान करते है।

पढ़े लिखे लोग ही ये सब अंधविश्वास का बढ़ावा देते हैं।     अनपढ़ लोगों के पास इन पढे़ लिखें लोगो जैसे संसाधन नहीं होने के कारण भी देश के विकास में गति प्रदान करते हैं।


ऐसे विकसित देशो के इतिहास देखा जाय तो वहां पर धर्म के नामोनिशान नहीं हैं। धर्म के अनुसार कोई भी देश विकसित नहीं हुआ है।

अगर आप समझते हैं कि कोई राजनीतिक दल आगे आकर देश को विकसित करेगा। तो यह संभव नहीं। क्योंकि देश को आजादी मिले 71वर्ष हो गया। लेकिन आज तक देश विकसित नहीं सका।


अब भारत के प्रत्येक नागरिक चाहे तो देश को विकसित कर सकते है। मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, चर्च आदि में इतने धन है कि भारत के लोगों को विकसित किया जा सकता है। लेकिन फिर भी भारत को एक पिछडी़ देशो में गिनती होता है।


एक बार जापान के प्रधानमंत्री भारत के यात्रा पर आए। वह बोले कि भारत के जनता या आपके पास पूजा पाठ के लिए इतना समय है तो आपको बुलेट ट्रेन की आवश्यकता ही नहीं है। आप लोगो के पास समय ही समय है।


यहाँ के पढ़े लिखे जनता सोशल मीडिया या धर्म को लेकर अपना समय बर्बाद करते रहते है। लेकिन यहाँ के जनता कुछ नहीं सोचते कि भारत को विकसित देश कैसे बनायें ?


भारत को विकसित देश बनाने में नागरिकों का योगदान (Citizens' contribution to making India a develope country)        



अगर भारत के प्रत्येक नागरिक यह सोच ले कि देश को विकसित कर देना है, तो यह जरूर हो जाएगा। इसके लिए भारतीय जनता एवं  जितनी भी राजनीतिक दल हैं। उनको पूरी निष्ठा एवं ईमानदारी पूर्वक भारत को विकसित देश बनाने में योगदान (contribution to making India a developed country) देना होगा।


शिक्षा प्रणाली - भारतीय शिक्षा प्रणाली दोषपूर्ण है। इसे सुधार करना अति आवश्यक है। इस शिक्षा प्रणाली से  वास्तविक जीवन में कोई लाभ नहीं होता है। शिक्षा व्यवस्था ऐसा होना चाहिए कि जनता के विकास एवं भलाई हो। जब  जनता का विकास होगा। तब देश का विकास दर बढेे़ेगा और जब विकास दर बढेे़गा तो देश विकसित होगा।


कालेधन की वापसी -  विदेशों में जितने कालेधन हैं। उनको वापस लाना। उस कालेधन को देश की संपत्ति घोषित करना  तथा देश को विकसित करने में इस धन का प्रयोग करना होगा।


विदेशी कंपनी - विदेशी कंपनियों के सामानों का बहिष्कार करना एवं आयात शुल्क बिल्कुल कम कर देना होगा। स्वदेशी कंपनियों को बढ़ावा देना एवं अधिक से अधिक स्वदेशी कंपनियों के माल का उत्पादन करा कर। बाजारों में उत्पादित माल अधिक से अधिक लाना होगा। जिस से देश का विकास दर बढ़ें और भारत विकसित हो सकें।


कृषि एवं उद्योग धंधे - भारत के प्रत्येक नागरिक को चाहिए कि कृषि कार्य एवं उद्योग धंधे को ज्यादा से ज्यादा बढ़ावा दें।क्योंकि कृषि एवं उद्योग से ही देश का विकास दर अधिक होता है। वैैैसे हर इंसान के लिए भोजन अत्यंत जरूरी है। इसलिए कृषि कार्य एवं उद्योग धंधे बहुत हीं महत्वपूर्ण है। इसके अलावा स्वास्थ्य भी बहुत जरूरी है। जिस कारण देश को विकसित किया जा सकता है। 


कर व्यवस्था - भारत के कर व्यवस्था ऐसा हो कि कोई भी व्यक्ति कर की चोरी न कर सके। आसानी से कर जमा भी हो जाए। जिसे देश को विकसित करना आसान हो जाएगा।


मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर एवं चर्च के धनों का सही उपयोग - मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर, एवं चर्च में इतने धन आते हैं कि इन धनों का प्रयोग करके एक विकसित भारत का निर्माण किया जा सकता है। जिससे आम जनता एवं देश को लाभ हो सके।


जिस प्रकार आम कर्मचारियों का पेशन बंद हो गया है। उसी तरह राजनीतिक नेताओं का पेंशन एवं अन्य सुविधाएं बंद हो। तब जा कर भारत विकसित देशों के श्रेणी में आ सकता है।


निष्कर्ष- पढ़े - लिखें लोग को आगे आकर केवल इतना ही करें कि देश के प्रत्येक नागरिक एक दूसरे से मिल जुल कर एवं सहयोगात्मक रहें। प्रत्येक व्यक्ति देश को विकसित करने में अपना भर पूूूर सहयोग दें।भारत को विकसित देश बनाने में नागरिकों का योगदान (Citizens'  contribution to making India a developed country) अत्यंत जरूरी है। तब जाकर भारत विकसित देशों की श्रेणी में आ सकता है।

दाखिल खारिज कराने हेतु आवेदन पत्र

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आवेदन पत्र कैसे लिखें