परीक्षा का भय से कैसे निदान पाएं(How to get diagnosed with fear of exam.)

परीक्षा का भय से कैसे निदान पाएं (How to get diagnosed with fear of exam.)


परीक्षा का भय से कैसे निदान पाएं (How to get diagnosed with fear of exam.) इसके लिए कुछ बिन्दुओं पर विचार करना अति आवश्यक है।

परीक्षा का अर्थ "दूसरों की इच्छा " उसे कहते हैं, परीक्षा । अर्थात् जब कोई व्यक्ति या संस्था परीक्षा लेता है, तब एक दूसरे व्यक्ति के द्वारा प्रश्न पत्र तैयार होता है। अधिकांश बच्चे, बड़े या अच्छे जानकार व्यक्ति परीक्षा के नाम से भागते या डरते हैं। 

परीक्षा के समय बच्चों में तनाव अधिक हो जाता है। बच्चें एक वर्ष कठिन परिश्रम करते हैं। और मात्र दो घंटे के परीक्षा में उसका मूल्यांकन किया जाता है। कुछ बच्चे को मूल्यांकन का भय अधिक होता है। वे दिन-रात परिश्रम करते हैं। कुछ बच्चे अधिक तनाव महसूस करते हैं। परीक्षा के समय में तनाव में नहीं रहना चाहिए। तनाव के कारण मस्तिष्क से स्मरण शक्ति कम होने लगता है। आप जो भी पढ़ते हैं, वे भूल जाएंगे।

 "परीक्षा से तुम डरो ना भाई ,अपने पढ़ाई में ध्यान लगाई।" 

एक कहावत है जो डर गया सो मर गया। यानी परीक्षा का भय नहीं होना चाहिए। कुछ बच्चों के माता-पिता का दबाव अधिक रहता है। जिस कारण सेे बच्चों में तनाव उत्पन हो जाते हैं।

    परीक्षा संबंधी डर को निम्न तरीकों से जानेंगे।

➡️आत्म - विश्वास की कमी -: कुछ  बच्चेे पढ़ाई में मेहनत बहुत करते हैं। रात दिन मेहनत करने के बाद भी अपने पर विश्वास नहीं करते है। बच्चे मेें परीक्षा का भय रहता है।

➡️नकारात्मक सोच -: कुछ बच्चे परिश्रम करते हैं। पढ़ाई में भी बहुत अच्छे होते हैं, परन्तु उनका सोच नकारात्मक होता है। वैसे बच्चे को परीक्षा में भय बना रहता है। वह यह सोचता है कि इस क्वेश्चन को याद करने से फायदा होगा या नहीं। इसी सोच के कारण बच्चे आगे नहीं बढ़ पाते है।

➡️लक्ष्य बनाकर पढ़ना -: कुुुछ बच्चें लक्ष्य बनाकर पढ़ते हैं। रात दिन परिश्रम करके पढ़ाई करते हैं कि परीक्षा में अच्छे अंक लाए। यानी हंड्रेड परसेंट। उनका परीक्षा भी बहुत अच्छा जाता है। अगर एक क्वेश्चन का आंसर नहीं दें पाय, तो परीक्षा में कम अंक का डर बना रहता है।

➡️सिलेबस पूरा न होना -:  कुछ बच्चे मौज मस्ती में अपना समय बर्बाद कर देते हैं। परीक्षा के समय तनाव में हो जाते हैं। उनका तनाव धीरे - धीरे बढ़ता जाता है। एक वर्ष का कोर्स  कुछ दिनों में खत्म करने के चक्कर में रहते हैं। जिससे मस्तिष्क पर दबाव पड़ता है।

➡️वर्ग कक्ष में छात्रों द्वारा लापरवाही-: जब वर्ग कक्ष में शिक्षक द्वारा अधिगम कराया जाता है, तो कुछ बच्चे बातें ध्यान से नहीं सुनते हैं। न गृह कार्य और न याद करते है। जिस कारण परीक्षा में डर बना रहता है।

 ➡️विषयबार डर-: कुछ बच्चे को कुछ विषयो में रुचि रहता है। जिस विषय में रुचि रहता है। उस विषय को अधिक पढ़ते हैं। जिस कारण अन्य विषय छुट जाते हैं। परीक्षा के समय अधिक भय बना रहता है।

➡️परीक्षा कक्ष में जाने से पहले भूल जाना-: बच्चे परीक्षा केंद्र पर उत्साह के साथ जाते हैं। वहां जाने के बाद लगता है कि सारी पढ़ाई भूल गए हैं। उस समय बच्चे तनाव में हो जाते हैं। तनाव के कारण परीक्षा अच्छा नहीं जाएगा।

➡️परीक्षा संबंधित अन्य भय-:
▶️ याद कर के जाने के बाद वह प्रश्न ना आना।
▶️ प्रश्नों का उत्तर गलत हो जाना
▶️ परीक्षा केंद्र पर जाने के क्रम में आंखों में धूल पड़ना बस,  ट्रेन छूट जाना या लेट हो जाना। इस से भी परीक्षा का भय बना रहता है।

परीक्षा का भय से कैसे निदान पाएं (How to get diagnosed with fear of exam.) उनके कुछ महत्वपूर्ण तरीके।

  आत्मविश्वास।

  सकरात्मक सोच।

  लक्ष्य बनाकर पढ़ना।

  सिलेबस पूरा करना।

  वर्ग कक्ष में ध्यान देना।

  सभी विषयों को बराबर ध्यान देना।


परीक्षा का भय से कैसे निदान पाएं (How to get diagnosed with fear of exam.)


निष्कर्ष-: परीक्षा के नियत समय से पहले से ही बच्चे तैयारी करते हैं। प्रतिदिन अभ्यास करके परीक्षा की तैयारी करते हैं। परीक्षा के दिनों में सभी बच्चों को तनाव हो जाते हैं। परीक्षा का भय से तनाव बना रहता है। कुछ बच्चे जीवन के प्रति तत्परता दिखाते हैं। इस कारण परीक्षा में सफल हो जाते हैं।बच्चे को परीक्षा देने से जीवन में कठिनाइयों का सामना करना आसान हो जाता है।


परीक्षा का भय से कैसे निदान पाएं (How to get diagnosed with fear of exam.)

Web Hindi Duniya: आदर्श अध्यापक के कर्तव्य (Duties of the ideal teac...

Web Hindi Duniya: आदर्श अध्यापक के कर्तव्य (Duties of the ideal teac...: आदर्श अध्यापक के कर्तव्य (Duties of the ideal teacher) समाज निर्माण में शिक्षकों की भूमिका महत्वपूर्ण होते हैं ।क्योंकि विद्यालय समाज के ...

आदर्श अध्यापक के कर्तव्य (Duties of the ideal teacher)

आदर्श अध्यापक के कर्तव्य (Duties of the ideal teacher)

समाज निर्माण में शिक्षकों की भूमिका महत्वपूर्ण होते हैं ।क्योंकि विद्यालय समाज के प्रांगण में आते हैं, बच्चे उसी समाज के हिस्से होते हैं। प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक जैसा कार्य करते हैं, यानी आदर्श अध्यापक के कर्तव्य(Duties of the ideal teacher)को देखकर बच्चे सीखते हैं। अध्यापक बच्चों को अच्छी शिक्षा के साथ-साथ ,एक अच्छे नागरिक बनने के लिए प्रेरित करते हैं।

               आदर्श शिक्षक समय का सही सदुपयोग करते हैं। बच्चों के समय की महत्व के बारे में बताते हैं। समय के अनुसार सुनियोजित, योजनाबद्ध तरीके से विषय का पूर्ण ज्ञान कराते हैं। जिससे बच्चों को अच्छी तरह  से अधिगम करा सकें।
               आदर्श अध्यापक के कर्तव्य (Duties of the ideal teacher) है कि उनके व्यवहार में नम्रता एवं विनम्रता का भाव हो, उनमें सहजता गंभीरता एवं विद्वता झलकता हो ,उनकी वाणी ऐसी हो कि बच्चे के मन को जीत ले ।
               वैसे तो शिक्षक का पद अत्यंत गरिमा पूर्ण होता है, क्योकिं "जिस प्रकार खेती के लिए बीज, खाद एवं उपकरण के रहते हुए, अगर किसान नहीं हैं, तो सब बेकार है।उसी प्रकार विद्यालय के भवन, शिक्षण सामग्री एवं छात्रों के होते हुए, शिक्षक नहीं हैं तो सब बेकार है।" शिक्षक शब्द तीन अक्षरों के मेल सेे बना है लेकिन शिक्षक का अर्थ व्यापक है।

                        शि-सीखाने वाले।
                        क्ष-क्षमा करने वाले।
                        क- कामयाबी पर पहुंचाने ।

अर्थात् सीखाने वाले, क्षमा करने एवं कामयाबी प्रदान कराने वाले शिक्षक आत्मज्ञानी एवं महान होते हैं।

            आदर्श अध्यापक (The ideal teacher) के निम्न गुण होते हैं-:

1) समय का पालन करना।

2) नम्र भाषा का प्रयोग करना।

3) सहयोग की भावना।

4) जाति एवं धर्म की बातें ना करना।

5) विषय का पूर्ण ज्ञान।

6) इमानदारी पूर्वक कक्षा कक्ष का संचालन।

7) सृजनात्मक होना।

8) क्रियात्मक एवं रचनात्मक होना।

1)समय का पालन करना-: वो हर कामयाब इंसान जो आज सफलता  के उस मंजिल को प्राप्त किये हैं। वे समय का पालन करके ही उस मंजिल को प्राप्त किये है। जो इंसान समय का कद्र किया,समय भी उसका कद्र किया है, इसलिए समय का पालन बच्चों को सीखाना बहुत जरूरी है। ऐसे अध्यापक समय का ध्यान रखें तो बच्चे उनके अनुकरण से ही सीखते हैं।

2) नम्र भाषा का प्रयोग करना-: अध्यापक को कक्षा कक्ष में या कहीं भी नम्र भाषा का प्रयोग करना चाहिए। ऐसे भी नम्र भाषा का प्रयोग कर के कठिन से कठिन कार्य आसानी से करवाया जाता है। छात्र/ छात्रा को भी नम्र भाषा का ज्ञान कराना चाहिए।

3) सहयोग की भावना-: अगर विद्यालय को सुचारू रुप से चलाना चाहते हैं, तो सहयोग की भावना शिक्षको में होनी चाहिए। जिसे देख कर बच्चे भी आपस में  सहयोग करने की भावना सीखेगें।

4) जाति एवं धर्म की बातें ना करना-: किसी भी अध्यापक का कोई जाति नहीं होता है। उसका एक ही जात है वह शिक्षक। एसे पूरी  ईमानदारी एवं निष्ठा पूर्वक विषय के ज्ञान कराते हुए ,पढ़ाना चाहिए और कक्षा कक्ष में या कहीं भी जाति या धर्म संबंधित बातें नहीं करना चाहिए। यह शिक्षक को शोभा नहीं देता।

5) विषय का पूर्ण ज्ञान-: जो विषय पढ़ाना है, उस विषय के अध्याय को पहले से पढ़कर विद्यालय जाएं, ताकि बच्चे को उस 40 से 45 मिनट के समय अंतराल में आप अच्छे तरीके से बिना इधर-उधर बातें करते हुए प्रभावी ढंग से बच्चे को अधिगम करा सके।

6) इमानदारी पूर्वक कक्षा कक्ष का संचालन-: कक्षा का संचालन पूरे आत्मविश्वास के साथ करना चाहिए । ताकि बच्चे ध्यान पूर्वक सुने एवं पूरी निष्ठा के साथ पढ़े।

7) सृजनात्मक होना-: अगर अध्यापक सृजनशील हैं , तो बच्चे भी सृजनशील होंगे। क्योंकि अध्यापक बच्चों को सृजनशीलता के बारे में बताते रहते हैं। इससे बच्चे सृजनशील रहते हैं। बच्चों में धीरे धीरे सृजनशीलता आने लगती है।

8) क्रियात्मक एवं रचनात्मक होना-: अध्यापक कक्षा में बच्चों को क्रियात्मक एवं रचनात्मक विधि से सिखाते हैं तो सीखा गया ज्ञान हमेशा मददगार होता है। बच्चों में जरूरी है कि वह खुद से प्रयोग करके ज्ञान अर्जित करे।

निष्कर्ष-: आदर्श अध्यापक के कर्तव्य(Duties of the ideal teacher) बहुत ही महत्वपूर्ण होते हैं। वह आत्मविश्वासी ,सृजनशील कर्मो पर विश्वास, नम्र , सरल एवं सीधा स्वभाव के होते हैं । वह सहजतापूर्ण अपने विषयों के ज्ञान छात्र-छात्रों तक आसानी से पहुंचते हैं।विद्यालय के छात्र छात्राओं के साथ खेल-खेल में अधिगम कराते हैं । वह समय पर विद्यालय आते हैं, समय पर सब काम करते हैं। वह समय के महत्व के बारे में विद्यालय के बच्चों को बताते हैं, वह कहते हैं कि एक - एक मिनट कीमती है , जितना हो सके उतना ज्ञान अर्जित कर लो।(Time is money) समय ही धन है।
                                 बच्चों के संग चेतना सत्र में भाग लेते हैं। वह अपना काम शीघ्र खत्म कर के किसी और के भी कामों में हाथ बटा देते हैं । वे हमेशा आगे की सोच रखते हैं।वह आज का काम कल पर नहीं छोड़ते हैं। वह हमेशा अपने कामों का एक सूची बनाकर रखते हैं। जो काम कर लिए ,उस सूची  में सही का निशान लगा लेते हैं। उनके व्यवहार इतने अच्छे हैं कि वह किसी भी संस्था में आसानी से अपने जगह बना लेते हैं। उनके चेहरे पर हमेशा मुस्कान झलकता है  वह व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति होते हैं। वे हमेशा नम्र भाषा का प्रयोग करते हैं। वह हमेशा फॉर्मल कपड़े पहनते हैं उनका पहनावा एक सीधा सदा होता है। उनसे बच्चे हमेशा खुश रहते हैं, क्योंकि विषय के ज्ञान कक्षा को देखते हुए पढ़ाते हैं।

प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार कैसे करें(how to improve quality of education in primary schools)

प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार कैसे करें(how to improve quality of education in primary schools)

प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार (Improve quality of education in primary schools) के लिए जरूरी है।

शिक्षक समाज के निर्माता होते हैं। समाज में विद्यालय आते हैं। विद्यालय के मुखिया शिक्षक होते हैं। वे भले ही आज पढ़ाते हैं, परंतु उनका सोच यह होता है कि आने वाले दिनों में उन बच्चों का भविष्य बेहतर हो, ऐसे भी शिक्षक समाज से जुड़े रहते हैं। इससे प्राथमिक विद्यालयों की स्थिति और भी महत्वपूर्ण होते हैं। समाज में शिक्षकों का स्थान युगों युगों से सर्वोपरि होता है। कबीरदास जी कहते हैं -:

" गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागूं पायं। 
बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताय।।"
             
जिस तरह हमारे जीवन के लिए ऑक्सीजन जरूरी होते हैं, उसी तरह हमारे जीवन सुधारने के लिए विद्यालय के शिक्षक होते हैं।


प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार (Improve quality of education in primary schools) अति महत्वपूर्ण है। क्योकि शिक्षक उन बच्चों को अनुशासित एवंं अज्ञानता से ज्ञानता की ओर उन्मुख कराते हैं। विद्यालयी शिक्षा जीवन में हमेशा मददगार होता है। बच्चे बड़े होकर अपने जीवन को बेहतर ढंग से प्रारंभ कर सकते हैं।
             
विद्यालय को विद्या के मंदिर और उस मंदिर का पुजारी शिक्षक और बच्चे होते हैं। जिसमें बच्चों को ज्ञान का बोध कराते हैं। हालांकि स्थितियां बदल चुकी है। कुछ जगहों पर अभी भी शिक्षक की स्थिति ठीक है। लेकिन कुछ जगहों पर स्थितियां बिल्कुल बदल गई हैं। जिस प्रकार Facebook के प्रोफाइल पिक्चर बदलते हैं, उसी प्रकार शिक्षक की स्थिति दिन-प्रतिदिन बदलती चली जा रही है।

प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार (Improve quality of education in primary schools)        

शिक्षक समाज पर यह आरोप लगाया जाता है कि शिक्षक छात्रों को नहीं पढ़ाते है। लेकिन कभी कोई यह नहीं कहता है कि सरकार शिक्षक को पढ़ाने नहीं देना चाहती हैं। इसमें सारे दोष सरकार का ही है, सरकार का कोई भी कार्यक्रम प्राथमिक विद्यालय से जोड़ दिया जाता है। इसमें शिक्षक शिक्षा से बिल्कुल अलग हो जाते हैं। बच्चों को भी उस कार्यक्रम के तहत विद्यालय तो आते हैं, लेकिन शिक्षक से जुड़ नहीं पाते हैं।
         

प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार कैसे करें(how to improve quality of education in primary schools)


प्राथमिक विद्यालय की स्थिति सरकार के द्वारा विद्यालय में छात्रवृत्ति एवं पोशाक राशि कार्यक्रम चलाये जाते हैं। वह गरीब बच्चों के लिए बहुत ही जरूरी है। इसमें बच्चे के कुल उपस्थिति के 75 % वाले छात्रो को छात्रवृत्ति एवं पोशाक  राशि दी जाती है। विद्यालय में सभी जातियों के बच्चे पढ़ते हैं। सरकार की तरफ से फरमान SC,ST, BC,EBC,Gen.के सभी कोटि के बच्चे को अलग -अलग  छात्र का नाम ,पिता का नाम, माता का नाम, वर्ग, वर्ग क्रमांंक,जाति ,आधार संख्या, खाता संंख्या , बैंक का नाम , Ifec code, मोबाइल नंबर एक format में अलग-अलग करके एक या 2 दिनों के अंदर दिया जाए। अब शिक्षक पढ़ाए कि छात्रों के Bio-data लिखें।

प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार कैसे करें(how to improve quality of education in primary schools) निम्न तरीके हैं-:


शिक्षक की नियुक्तियाँँ -: प्रत्येक विद्यालय में विषयवार शिक्षक की नियुक्तियाँ हो। जिसे प्राथमिक विद्यालय के बच्चे हर विषय पढ़ सकें। इसके बाद प्रत्येक विद्यालय में क्लर्क एवं चपरासी की नियुक्ति हो। जिससे शिक्षक विद्यालय में पठन पाठन का कार्य कर सकें।


शिक्षक को ससमय वेतन-: प्रत्येक शिक्षक के साथ चार से पांच लोग जुड़े रहते हैं। वेतन के अभाव में, वे अपने परिवार एवं बच्चे को सही ढंग से नहीं रख पाते हैं। जिससे सारा ध्यान पैसे पर रहता है। घर के राशन नहीं है। दुकानदार से 6 महीने से उधारी ले कर अपना खर्च चलाते है। शिक्षक को प्रत्येक महीने समय से वेतन नहीं मिलने के कारण शिक्षक अच्छे ढ़ग से नहीं पढ़ा पाते। अगर प्रत्येक महीने शिक्षक को समय पर वेतन मिले तो शिक्षक का मन इधर-उधर नहीं भटकेगा। जिस कारण विद्यालय के बच्चों को पढ़ाने में भी मन लगा रहेगा।


शिक्षक को गैर शैक्षणिक कार्य से विमुक्त करें-: विद्यालय के शिक्षकों द्वारा छात्रों को अच्छी शिक्षा देना चाहते हैं , तो गैर शैक्षणिक कार्य शिक्षक से न करायेे । शिक्षक को अन्य कार्य में लगा दिया जाता है जिससे कि विद्यालय के बच्चे को पढ़ा नहीं पाते । इसलिए गैर शैक्षणिक कार्य नहीं कराया जाए।


शिक्षकों का मानसिक एवं आर्थिक शोषण-:
सरकार के प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा बिना सोचे समझे फरमान जारी कर देते हैं । जिसके कारण विद्यालय के बच्चों के पढ़ाई नहीं हो पाता।


निष्कर्ष-

प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार कैसे करें(how to improve quality of education in primary schools) विद्यालयों की स्थितियाँ बिल्कुल ही बदल गया है। यह आरोप लगाया जाता है कि शिक्षक अपने कर्तव्य से हट गए हैं। गैर शैक्षणिक कार्यों के कारण शिक्षा को पूरी तरह खत्म कर दिया गया है। शिक्षकों को प्रतिदिन अनेकों प्रकार के कार्य दिए जाते हैं जिससे शिक्षक बच्चों को ठीक ढंग से शिक्षण नहीं करा पाते हैं।

बिहार के सरकारी विद्यालय के कक्षा 1 एवं 2 के छात्रों की मानसिक स्थिति(Mental Status of Class 1 & 2 students of Government School of Bihar)

बिहार के सरकारी विद्यालय के कक्षा 1 एवं 2 के छात्रों की मानसिक स्थिति (Mental Status of Class 1 & 2 students of Government School of Bihar)

बिहार के सरकारी विद्यालय के कक्षा 1 एवं 2 के छात्रों की मानसिक स्थिति(Mental Status of Class 1 & 2 students of Government School of Bihar) पर विचार करना जरुरी हैै। उन छात्रों का उम्र महज 5 से 7 साल के बीच होता है।

जो बच्चे अपने माँ के आँचल में रहा या एक ऐसे वातावरण में रहा हो। जिसे उसे किसी भी बात के लिए माँँ - माँँ कह कर पुकारता हो। एक डर लगने वाले स्थान पर यानी सभी बच्चों को विद्यालय के नाम से डर लगता है। उसका नामांकन विद्यालय में करा दिया जाता है।

अब कक्षा 1 एवं 2 के छात्रों को भी 9:00 बजे से 4:00 बजे तक विद्यालय में रहना होता है। जब उन बच्चों का विद्यालय में नामांकन नहीं हुआ था। तो उन बच्चों की मानसिक स्थिति बिल्कुल सामान्य स्थिति में रहता था। क्योंकि वह अपने मन के अनुसार कभी अपने माँँ के साथ, तो कभी अपने दादी के साथ रहा करते हैं। लेेेकिन नामांकन के बाद वही बालक को  9:00 बजे से 4:00 बजे तक विद्यालय रहना पड़ता है।


कक्षा 1 एवं 2 के छात्रों की स्थिति - अगर कभी उनकी कक्षाओं में, मैं जाता हूँँ। तो एक अलग तस्वीर देखने को मिलता है। तो कभी हंँसी तो कभी गुस्सा आता है। लेकिन उनकी उम्र एवं मानसिकता को देखकर सारा गुस्सा प्यार में बदल जाता है। मैं उनकी मानसिक स्थितियों को समझा ।क्योंकि वह सुबह 9:00 बजे से 4:00 बजे तक विद्यालय में रहते हैं।

निष्कर्ष -: बिहार के सरकारी विद्यालय के कक्षा 1 एवं 2 के छात्रों की मानसिक स्थिति(Mental Status of Class 1 & 2 students of Government School of Bihar) विद्यालय खुलने का समय 9:00 बजे एवं बंद होने का समय 4:00 बजे तक रहता है। जिसमें 8 घंटा होता है। जिस बच्चे या किसी भी व्यक्ति को कहीं जाना हो तो एक घंटा पहले तैयार होते हैं। यह नियम बच्चों पर भी लागू होता है। बच्चे स्कूल जाने के लिए 8:00 बजे से ही तैयार होते हैं। तथा वह 4:00 बजे तक रहते हैं। इसमें 9 घंटे का समय होता है। उतने समय तक रहने के बाद उनकी मानसिक स्थिति पर विचार करना अति आवश्यक है।
















भारत को विकसित देश बनाने में नागरिकों का योगदान (Citizens' contribution to making India a developed country)

भारत को विकसित देश बनाने में नागरिकों का योगदान (Citizens' contribution to making India a developed country)




भारत को विकसित देश बनाने में नागरिकों का योगदान (Citizens' contribution to making India a developed country) महत्वपूर्ण है। अगर जनमानस का साथ रहा तो भारत को विकसित देश बनाने से कोई नहीं रोक सकता है।

वैसे विकसित देशों के इतिहास उठाकर देखें तो पता चलता है कि प्रत्येक जनता देश को विकसित करने के लिए अपना पूरा सहयोग एवं बहुमूल्य समय देते हैं। प्रत्येक नागरिक सदैव तत्पर रहते हैं कि उनका देश कैसे विकसित हो।


भारत को विकसित देश बनाने में नागरिकों का योगदान (Citizens' contribution to making India a developed country)


पढ़े लिखे समझदार लोग अपनी पढ़े-लिखे होने का सबूत देते हैं। कहां तो मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर, गुरुद्वारा, में जाकर अपनी मनोकामना पूर्ण करते या लाखो के दान करते है।

पढ़े लिखे लोग ही ये सब अंधविश्वास का बढ़ावा देते हैं।     अनपढ़ लोगों के पास इन पढे़ लिखें लोगो जैसे संसाधन नहीं होने के कारण भी देश के विकास में गति प्रदान करते हैं।


ऐसे विकसित देशो के इतिहास देखा जाय तो वहां पर धर्म के नामोनिशान नहीं हैं। धर्म के अनुसार कोई भी देश विकसित नहीं हुआ है।

अगर आप समझते हैं कि कोई राजनीतिक दल आगे आकर देश को विकसित करेगा। तो यह संभव नहीं। क्योंकि देश को आजादी मिले 71वर्ष हो गया। लेकिन आज तक देश विकसित नहीं सका।


अब भारत के प्रत्येक नागरिक चाहे तो देश को विकसित कर सकते है। मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, चर्च आदि में इतने धन है कि भारत के लोगों को विकसित किया जा सकता है। लेकिन फिर भी भारत को एक पिछडी़ देशो में गिनती होता है।


एक बार जापान के प्रधानमंत्री भारत के यात्रा पर आए। वह बोले कि भारत के जनता या आपके पास पूजा पाठ के लिए इतना समय है तो आपको बुलेट ट्रेन की आवश्यकता ही नहीं है। आप लोगो के पास समय ही समय है।


यहाँ के पढ़े लिखे जनता सोशल मीडिया या धर्म को लेकर अपना समय बर्बाद करते रहते है। लेकिन यहाँ के जनता कुछ नहीं सोचते कि भारत को विकसित देश कैसे बनायें ?


भारत को विकसित देश बनाने में नागरिकों का योगदान (Citizens' contribution to making India a develope country)        



अगर भारत के प्रत्येक नागरिक यह सोच ले कि देश को विकसित कर देना है, तो यह जरूर हो जाएगा। इसके लिए भारतीय जनता एवं  जितनी भी राजनीतिक दल हैं। उनको पूरी निष्ठा एवं ईमानदारी पूर्वक भारत को विकसित देश बनाने में योगदान (contribution to making India a developed country) देना होगा।


शिक्षा प्रणाली - भारतीय शिक्षा प्रणाली दोषपूर्ण है। इसे सुधार करना अति आवश्यक है। इस शिक्षा प्रणाली से  वास्तविक जीवन में कोई लाभ नहीं होता है। शिक्षा व्यवस्था ऐसा होना चाहिए कि जनता के विकास एवं भलाई हो। जब  जनता का विकास होगा। तब देश का विकास दर बढेे़ेगा और जब विकास दर बढेे़गा तो देश विकसित होगा।


कालेधन की वापसी -  विदेशों में जितने कालेधन हैं। उनको वापस लाना। उस कालेधन को देश की संपत्ति घोषित करना  तथा देश को विकसित करने में इस धन का प्रयोग करना होगा।


विदेशी कंपनी - विदेशी कंपनियों के सामानों का बहिष्कार करना एवं आयात शुल्क बिल्कुल कम कर देना होगा। स्वदेशी कंपनियों को बढ़ावा देना एवं अधिक से अधिक स्वदेशी कंपनियों के माल का उत्पादन करा कर। बाजारों में उत्पादित माल अधिक से अधिक लाना होगा। जिस से देश का विकास दर बढ़ें और भारत विकसित हो सकें।


कृषि एवं उद्योग धंधे - भारत के प्रत्येक नागरिक को चाहिए कि कृषि कार्य एवं उद्योग धंधे को ज्यादा से ज्यादा बढ़ावा दें।क्योंकि कृषि एवं उद्योग से ही देश का विकास दर अधिक होता है। वैैैसे हर इंसान के लिए भोजन अत्यंत जरूरी है। इसलिए कृषि कार्य एवं उद्योग धंधे बहुत हीं महत्वपूर्ण है। इसके अलावा स्वास्थ्य भी बहुत जरूरी है। जिस कारण देश को विकसित किया जा सकता है। 


कर व्यवस्था - भारत के कर व्यवस्था ऐसा हो कि कोई भी व्यक्ति कर की चोरी न कर सके। आसानी से कर जमा भी हो जाए। जिसे देश को विकसित करना आसान हो जाएगा।


मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर एवं चर्च के धनों का सही उपयोग - मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर, एवं चर्च में इतने धन आते हैं कि इन धनों का प्रयोग करके एक विकसित भारत का निर्माण किया जा सकता है। जिससे आम जनता एवं देश को लाभ हो सके।


जिस प्रकार आम कर्मचारियों का पेशन बंद हो गया है। उसी तरह राजनीतिक नेताओं का पेंशन एवं अन्य सुविधाएं बंद हो। तब जा कर भारत विकसित देशों के श्रेणी में आ सकता है।


निष्कर्ष- पढ़े - लिखें लोग को आगे आकर केवल इतना ही करें कि देश के प्रत्येक नागरिक एक दूसरे से मिल जुल कर एवं सहयोगात्मक रहें। प्रत्येक व्यक्ति देश को विकसित करने में अपना भर पूूूर सहयोग दें।भारत को विकसित देश बनाने में नागरिकों का योगदान (Citizens'  contribution to making India a developed country) अत्यंत जरूरी है। तब जाकर भारत विकसित देशों की श्रेणी में आ सकता है।

गरीबी एवं भुखमरी के रोकथाम के उपाय(Poverty and hunger prevention measures)

गरीबी एवं भुखमरी के रोकथाम के उपाय (Poverty and hunger prevention measures)


हमारे देश के गरीब जनता 19.4 करोड़ लोग आज भी भुखमरी के शिकार हैं। वह प्रतिदिन भूखे सोते हैं। ऐसे भी भूखे सोना उनकी आदत नहीं, मजबूरी है। क्योंकि गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वालों की संख्या काफी मात्रा में हैं।

ऐसे उन गरीबोंं पर न सरकार और न उन अमीर का ही ध्यान है। ऐसे उन गरीबों के लिए कई योजनाओं की शुरुआत तो किया गया। लेकिन इन योजनाएं में कुछ योजनाएं चल रही है। और कुछ योजनाएं बंद हो गई। फिर भी जो योजना चल रहीं है, उससे कोई लाभ नहीं है। सारी योजनाएं फेल साबित हुई। यह कह लीजिए कि गरीबों तक इन योजना का लाभ पहुंचना मुश्किल है।


इन गरीब एवं भूखे व्यक्तियों के लिए एक ठोस कदम उठाना होगा। ऐसे एक संस्था का निर्माण किया जाना चाहिए जिसमें 19.4 करोड़ गरीबों में से 10 करोड़ गरीबों को कोई ना कोई काम दिया जाना चाहिए। उनसे मेहनत का काम करना चाहिए। जो जैसा हो उस प्रकार का काम करना चाहिए। तब तो उसे दो वक्त की रोटी मिल सकता है। ऐसे भी बहुत सारे काम है। जैसे रस्सी बनाना, दूध उत्पादन, कृषि कार्य आदि बहुत सारा काम है।


जो करके उन के लिए दो वक्त के खाने का इंतजाम करना  सरकार के लिए कोई मुश्किल का काम नहीं है। उन गरीबों के लिए सरकार के साथ-साथ प्रत्येक जनता को भी चाहिए कि उन गरीबों के लिए कुछ सहयोग करें। ताकि गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले को कुछ सहायता प्राप्त हो सके।


गरीबी एवं भुखमरी के रोकथाम के उपाय (Poverty and hunger prevention measures) के ठोस कदम



शादी विवाह एवं अन्य कई समारोह या पार्टियां मनाया जाता है:-



शादी विवाह में बहुत सारे लोगो के लिए खाना बनता है। उन खाना में से बहुत से खाने बच जाता है। जो बर्बाद हो जाता है।ऐसे कई संस्थाएं हैं। जो गरीबों के लिए काम करते हैं उन संस्थाओं वालों को बुलाकर, जो खाना बच जाए। तो उन्हें दे देना चाहिए। ताकि भूखे एवं गरीबों में बांट दे। जिसे खाना बर्बाद भी नहीं होगा। गरीब एवं भूखे लोगो की मदद भी हो जाएगा।


ऐसे भी बहुत सारे पार्टियां मनाया जाता है। जिसमेें बहुत सा खाना बर्बाद होता है। इससे खाना भी बर्बाद नहीं होगा। और गरीबों एवं भूखे व्यक्तियों के लिए कुछ सहायता भी हो जाएगा।


 ऐसे बहुत सारे अमीर लोग बड़े बड़े होटलों में खाना खाने जाते हैं। और किसी कारण से खाना नहीं खा पाते है। तो उन खाने को फेकने से अच्छा है कि पैक करवा कर गरीबों में बांट देना चाहिए। ताकि गरीबों को खाना मिल सके।


प्रत्येक घर से केवल प्रतिदिन एक मुट्ठी अनाज देने का निर्णय स्वयं करना चाहिए। जिससे कि गरीबों के कुछ सहायता हो सके।


ऐसा ही Articles पढ़ना चाहते हैं तो एक बार मेरे बेबसाइड www.webhindiduniya.blogspot.com पर जाकर पढ़ सकते हैं।

तनाव या टेंशन को दूर करने का 7 महत्वपूर्ण उपाय। 7 important ways to overcome stress or tension



दाखिल खारिज कराने हेतु आवेदन पत्र

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