शिक्षक का कर्तव्य (Teacher's duty)
आज इस आर्टिकल में शिक्षक के कर्तव्य (Teacher's duty) के बारे में हम लोग जानेंगे।
शिक्षक का कर्तव्य (Teacher's duty) |
आज के समय में पढ़ाई का दबाव बच्चों को मानसिक और शारीरिक तौर पर तेजी से बीमार बना रहा है और ज्यादातर अभिभावक इस बात से अनजान हैं। यह बात मुझे तब मालूम हुई, जब एक दिन स्कूल से वापस आने के बाद मेरी बेटी ने कमजोरी और थकान की बात की वह कितनी बीमार थी। इसका अनुमान मुझे तब लगा जब चिकित्सक ने उसका ब्लड प्रेशर लो होने की बात बताई।
मैंने उसे कई चिकित्सकों से जांच कराया पर कोई सुधार नहीं हुआ। इस बात को लेकर मैं हमेशा तनाव में रहा करता था। मुझे महसूस हुआ कि प्रतियोगिता की अंधी दौड़ में आज के बच्चे कितना अधिक सामाजिक और मानसिक दबाव का दंश झेल रहे हैं। पिता होने के नाते बेटी के कष्ट को किस तरह मैं सहन कर रहा था यह बता पाना मुश्किल है। मैं पेशे से स्कूल अध्यापक हूंँ।
शिक्षक का कर्तव्य (Teacher's duty) |
स्कूल से आने के बाद मेरा ज्यादातर समय बेटी को पढ़ाने में बीतता था। जिस चिकित्सक के बारे में बताते मैं उसके पास दौड़ा चला जाता। जब आप बहुत कष्ट में होते हैं तो ईश्वर ही कोई रास्ता बनाता है।
मेरे मन में विचार आया कि मैं तो शिक्षक हूं क्यों न कुछ ऐसा किया जाए कि मेरी बेटी के तरह किसी अन्य विद्यार्थी को यह परेशानी न झेलनी पड़े।
मैंने छात्रों के लिए मैथ एंड साइंस के अंतर्गत पाठ्यक्रम में शामिल पुस्तकों की विषयवस्तु को सहज भाषा में (हिंदी व अंग्रेजी) क्रमबद्ध तरीके से तैयार किया। अथक प्रयास के बाद लगभग आठ महीनों की मेहनत में मैं यह कार्य पूर्ण कर सका।
शिक्षक का कर्तव्य (Teacher's duty) |
विषय वस्तु को सरल,रोचक,बोधगम्य बनाने और छात्रों को स्वयं मूल्यांकन करने के लिए 150 प्रश्नों की एक क्वेश्चन बैंक तैयार की।
मेरे द्वारा विद्यार्थियों के लिए किये गये, इस काम से मुझे खूब सराहना मिली। यह बात अलग है कि बाजार में हर विषय की ढेरों किताबें, गाइड, क्वेश्चन बैंक आदि उपलब्ध है, लेकिन इसके लिए बच्चों को काफी कीमत भी चुकानी पड़ती है और इतनी अधिक पठन सामग्री होती है कि बच्चे असमंजस की स्थिति में रहते हैं।
जब वही पाठ्यक्रम सहज और रोचक ढंग से संक्षिप्त भाषा में समझाया जाता है तो बच्चों को संबंधित विषय से डर नहीं लगता है।
यह सब करने का मेरा उद्देश्य था कि बच्चे पढ़ाई को मनोरंजक अंदाज में समझें और उन्हें किसी तरह का मानसिक दबाव न झेलना पड़े, क्योंकि मैंने अपनी बेटी के परीक्षा के तनाव और उससे उत्पन्न कष्ट को देखा था।
वास्तव में यह काम मेरे लिए कड़ी चुनौती था, क्योंकि मेरी बेटी पढ़ाई के तनाव के चलते ही बीमार हुई थी, पर भगवान ने मेरा साथ दिया और मैं अपने मिशन में कामयाब रहा।
मैं संक्षेप में सिर्फ इतना ही कहूंगा कि शिक्षा जरूरी है लेकिन बच्चों पर इतना प्रेशर न बनाए कि वे मानसिक रूप से कमजोर हो जाए या किसी बीमारी का शिकार हो जाए। मेरे इस प्रयास में कई शिक्षकों ने अपने विषय को सहज ढंग से लिखने का वादा किया।
इस कहानी के माध्यम से मैं सभी शिक्षकों और अभिभावकों से कहना चाहता हूं कि जीवन में किया गया छोटा सा प्रयास सकारात्मक बदलाव लाने के लिए काफी होता है।
"हम भले ही सूरज न बन सकें तो क्या हुआ, एक दीपक बन कर मार्ग दिखाने का माध्यम जरूर बन सकते हैं।"
शिक्षक का दायित्व एवं कर्तव्य बहुत जिम्मेदारी वाला होता है। इसलिए उन्हें ऐसे काम करने चाहिए, जो विद्यार्थियों का भविष्य संवारने में सहायक हो।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें